गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के द्वारा ही व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की प्रगति संभव!

डॉ. जगदीश गाँधी, शिक्षाविद् एवं

संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ

किसी भी राज्य का मुख्य कार्य सर्वश्रेष्ठ नागरिक तैयार करना हैः-

               गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की प्रगति के लिए सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है। महान दार्शिनिक प्लेटो ने अपनी पुस्तक रिपब्लिक में आदर्श राज्य की परिकल्पना करते हुए कहा है कि ‘‘राज्य सर्वप्रथम एक शिक्षण संस्थान है।’’ अगर राज्य अपने नागरिकों को श्रेष्ठ और रोजगार-परक शिक्षा देने में असमर्थ है, तो उस राज्य का विनाश निश्चित है। इस प्रकार किसी भी राज्य का मुख्य कार्य सर्वश्रेष्ठ नागरिक तैयार करना है, और वह केवल श्रेष्ठ और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से ही संभव है। क्योंकि शिक्षा व्यक्ति एवं राज्य के हितों में समन्वय भी स्थापित करती है इसलिए वह व्यक्ति को ‘सद्व्यक्ति’ बनाने के साथ ‘सद्नागरिक’ भी बनाती है।

सद्गुण ही ज्ञान है:-

               महान दार्शनिक प्लेटो ने अपनी पुस्तक रिपब्लिक में लिखा है ‘‘सद्गुण ही ज्ञान है।’’ (अपतनजम पे ादवूसमकहम) प्लेटो ने यह विचार अपने गुरू सुकरात से ग्रहण किया था, जिनका मानना था कि सद्गुण और ज्ञान एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इस प्रकार ज्ञान का वास्तविक अर्थ है-शुभ-अशुभ, सत्य-असत्य, न्याय-अन्याय तथा कर्तव्य-अकर्तव्य में भेद कर पाने की क्षमता है। वास्तव में ज्ञान सद्गुण तब बनता है, जब वह प्रत्येक मनुष्य की केवल चेतना का हिस्सा न रहकर प्रत्येक व्यक्ति के आचरण एवं व्यवहार में दिखने लगता है। इस प्रकार शिक्षा वह दीपक है जो व्यक्ति के जीवन को प्रकाशमान कर उसे अपने जीवन में शिखर तक पहुंचाता है। शिक्षा का उद्देश्य शरीर और मस्तिष्क दोनों का विकास करना होना चाहिए।

शिक्षा व्यक्ति की आत्मा को विकसित करती है:-

               किसी ने सही ही कहा है कि किसी भी मनुष्य के ज्ञान का स्रोत उसकी स्वयं की आत्मा है, जिसमें पहले से ही सद्गुण विद्यमान है। शिक्षा के द्वारा किसी भी मनुष्य की आत्मा में बाहरी रूप से ज्ञान का प्रवेश नहीं कराया जा सकता बल्कि शिक्षा आत्मा में विद्यमान इन्हीं सद्गुणों को बाहर निकाल कर उसे सही दिशा में गतिमान कर देती है। इस प्रकार शिक्षा एक ऐसा वातावरण बनाती है जिसमें प्रत्येक बालक कि आत्मा में निहित ज्ञान स्वतः ही प्रकट हो जाते हैं। इस प्रकार शिक्षा का कार्य ऐसा स्वस्थ वातावरण तैयार करना है, जिसमें प्रत्येक बालक का मस्तिष्क सद्गुणों की ओर आकर्षित हो और बालक उन सद्गुणों पर चलना शुरू करें।

शिक्षा विपरीत परिस्थितियों में भी बालक को समाधान करने को प्रेरित करती है:-

               शिक्षा किसी भी बालक के मस्तिष्क को इस प्रकार तैयार करती है कि वह प्रतिकूल वातावरण एवं परिस्थितियों में भी विवेकपूर्ण ढंग से सभी समस्याओें का सरलतापूर्वक समाधान कर सके। महान दार्शिनिक प्लेटो ने भी कहा है कि ‘‘एक अच्छा निर्णय ज्ञान पर आधारित होता है, नम्बरों पर नहीं।’’ इस प्रकार यदि देश के प्रत्येक बालक के व्यक्तित्व को गुणवत्तापूर्ण एवं संतुलित शिक्षा के माध्यम से सही ढंग से गढ़ा जायें तो वह सही निर्णय लेकर न केवल अपनी समस्याओं का हल निकालेगा, बल्कि सम्पूर्ण मानव जाति के हित में बाधक बनने वाली समस्याओं का भी समाधान निकालने में सक्षम होगा। इस प्रकार शिक्षा सद्गुण में वृद्धि करती है और व्यक्ति को ‘एक अच्छा व्यक्ति’ बनने में सहायता प्रदान करती है।

योग एवं आध्यात्म शिक्षा व्यवस्था का एक प्रमुख अंग:-

               शिक्षा द्वारा मनुष्यों में ऐसे गुणों और क्षमताओं का विकास किया जाए कि वह अपने वर्तमान जीवन को कुशलता पूर्वक जी सके और अपने भावी जीवन का मार्ग प्रशस्त कर सके। अगर हम प्राचीन काल की शिक्षा व्यवस्था की बात करें तो हमारे यहां गुरूकुल आश्रम पद्धति एवं शिक्षा केन्द्र मौजूद थे। जिसमें योग एवं आध्यात्म को शिक्षा व्यवस्था का एक प्रमुख अंग माना गया था। और इसमें कोई शक नहीं है कि प्राचीन काल में योग एवं आध्यात्म के बल पर जो शिक्षा छात्रों को प्रदान की जाती थीं, उसी के बल पर हमारा देश कभी विश्व गुरू हुआ करता था।

शिक्षा मनुष्य के समग्र विकास का मुख्य केंद्र बिन्दु:-

               श्रेष्ठ एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा वह प्रकाश है जिसके द्वारा बालक की समस्त शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक शक्तियों का विकास होता है। इससे वह समाज, राष्ट्र और विश्व का एक प्रभावशाली चरित्र सम्पन्न नागरिक बनकर सारी मानव जाति के कल्याण में अपना योगदान तो देता ही है साथ ही अपने देश की संस्कृति और सभ्यता को पुनर्जीवित एवं पुनस्थार्पित भी करता है। इसके साथ ही वह व्यक्तिगत नैतिकता तथा सार्वजनिक नैतिकता में एकता स्थापित करके राज्य व विश्व की एकता व अखण्डता को भी मजबूत करता है। इसलिए हमें प्रत्येक बालक को बचपन से ही (1) भौतिक (2) सामाजिक और (3) आध्यात्मिक शिक्षा प्रदान करके उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करके उसे विश्व नागरिक के रूप में तैयार करना चाहिए।

प्रत्येक बच्चे को विश्व की समस्याओं के प्रति संवेदनशील बनायें:-

               आज विकास और पर्यावरण के द्वंद के कारण मानव जीवन का भविष्य अच्छा नहीं रह गया है, जिसे सुधारने की जरूरत है। प्लेटो के अनुसार ‘‘शिक्षा का कार्य मनुष्य के शरीर और आत्मा को वह पूर्णता प्रदान करना है, जिसके कि वे योग्य हैं।’’ प्लेटो ने स्पष्ट किया कि मनुष्य की प्रवृत्ति सत्यं, शिवं और सुन्दरम की ओर झुकी होती है, वह सदैव सत्य की खोज के लिए प्रयत्नशील रहता है और जो कल्याणकारी एवं सुन्दर है, उसको स्वीकार करता है और जो कल्याणकारी एवं सुन्दर नहीं है, उसका त्याग करता है। इसके लिए विश्व के सभी देशों के विद्यालयों में ऐसी शिक्षा व्यवस्था स्थापित करनी चाहिए, जिसमें प्रत्येक विद्यार्थी विश्व पर्यावरण के साथ ही अन्य समस्याओं के प्रति भी संवेदनशील हो और उनके समाधान के लिए अपने ज्ञान का सदुपयोग करे।

आइये, प्रत्येक बालक को एक अच्छा इंसान बनायें:-        

               आज विद्यालय की चिन्ता यह है कि बोर्ड परीक्षाओं के परीक्षाफल कैसे अच्छे बने? विद्यालयों के बीच अपने-अपने रिजल्ट को सबसे अच्छा दिखाकर अधिक से अधिक बच्चों के दाखिले की होड़ लगी हुई है। इस होड़ में स्कूलों तथा कालेजों में सामाजिक तथा आध्यात्मिक शिक्षा विलुप्त होती चली जा रही है। वर्तमान समय में अच्छे रिजल्ट बनाने की होड़ को कम नहीं किया जा सकता। इस हेतु बालक को अपने सभी विषयों का संसार का सबसे उत्कृष्ट भौतिक ज्ञान तो मिलना चाहिए। किन्तु इसके साथ ही साथ उसमें समाज के प्रति संवेदनशीलता तथा उसके हृदय में परमात्मा के प्रति अटूट प्रेम भी उत्पन्न करने के लिए उसे भौतिक के साथ ही सामाजिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा देना भी जरूरी है और तभी हम प्रत्येक बालक को एक अच्छा इंसान बना कर इस धरती पर आध्यात्मिक सभ्यता की स्थापना कर सकेंगे।

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