प्रकृति और मनुष्य के बीच गहरा संबंध है! (प्रकृति से ‘हर दिन नया जन्म और हर रात नई मौत’ का संदेश प्रसारित हो रहा है)


- प्रदीपजी ‘पाल’, लेखक 
     पृथ्वी पर पर्यावरण प्रकृति की सबसे कीमती देन है। पर्यावरण यानि जल, वन, पेड़-पौधे, वातावरण, जलवायु आदि। पृथ्वी पर वर्तमान तथा आने वाली पीढ़ियों के जीवन की रक्षा के लिए हमें इसे संरक्षित करना अत्यन्त आवश्यक है। प्रकृति की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह अपनी चीजों का उपभोग स्वयं नहीं करती। जैसे-नदी अपना जल स्वयं नहीं पीती, पेड़ अपने फल खुद नहीं खाते, फूल अपनी खुशबू पूरे वातावरण में फैला देते हंै। इसका मतलब यह हुआ कि प्रकृति किसी के साथ भेदभाव या पक्षपात नहीं करती, लेकिन मनुष्य जब प्रकृति से अनावश्यक खिलवाड़ करता है तब उसे गुस्सा आता है। जिसे वह समय-समय पर सुखा, बाढ़, सैलाब, तूफान के रूप में व्यक्त करते हुए मनुष्य को सचेत करती है।  
    जमीन में जब बीज अपने समस्त अस्तित्व को विलीन कर देता है, खो देता है, तो ही जीवन अंकुरित होता है और अंकुरित होकर शनैः शनैः विकसित होता है एवं विस्तार पाता है, परंतु हम इस बीज के संकेत को समझ नहीं पाते हैं। जीवन को बोया नहीं, वर्तमान समय से पलायन कर गए, मुख मोड़ लिया और उपलब्धियों एवं वैभव के चमकते पल में खो गए। हमारे छोटे-छोटे कार्यों में जीवन का रहस्य तथा महान उद्देश्य छिपा है। जीवन को बाहरी उपलब्धियों एवं प्रशस्तियों से भर देना जीवन का उद्देश्य नही है। बौद्धिक व्यक्ति के जीवन में विकास की संभावनाएँ समायी होती है। लेकिन बाहरी उपलब्धियों एवं प्रशस्तियों से जीवन को भरने की लालसा पैदा होने से महान जीवन की संभावनाएँ क्षीण हो जाती हैं और जीवन संसार की कृत्रिमता से ढक जाता हैं। 
    जीवन से तात्पर्य है- प्रकृति और मनुष्य के बीच समुचित साहचर्य। जब यह साहचर्य घटित होता है तो अपने अंदर कर्तव्य अर्थात लोक कल्याण के अपने अस्तित्व को समझने एवं बोध करने की प्रारंभिक प्रक्रिया प्रारंभ होती है। प्रकृति और मनुष्य के बीच बहुत गहरा संबंध है। दोनों एक-दूसरे के पूरक है। आज तक मनुष्य ने जो कुछ हासिल किया वह सब प्रकृति से सीखकर ही किया है। न्यूटन जैसे महान वैज्ञानिकों को गुरूत्वाकर्षण समेत कई पाठ प्रकृति ने सिखाए हैं तो वहीं कवियों, लेखकों, साहित्यकारों जैसे बौद्धिकों ने प्रकृति के सान्निध्य में रहकर एक से बढ़कर एक साहित्य, लेख, कविताएं लिखीं। इसी तरह आम आदमी ने प्रकृति के तमाम गुणों को समझकर अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव किए। 
    आज कोई वर्तमान का सामना ही नहीं करना चाहता; जबकि वर्तमान में जीने वाले बौद्धिक के लिए अनेकों विभूतियाँ व उपलब्धियाँ हैं। यदि कोई वर्तमान समय में टिक जाए तो उसे सबसे पहली उपलब्धि ‘एकाग्रता’ ‘मिलेगी। अतीत व भविष्य ही हमें भटकाता है। भटकाने वाली सारी विषयवस्तु अतीत व भविष्य से आती है। वर्तमान में टिकते ही हममें स्वाभाविक रूप से एकाग्रता आ जाती है। इसकी दूसरी उपलब्धि है ‘कुशलता’। जब व्यक्ति किसी कार्य को एकाग्रतापूर्वक करता है तो वह बहुत जल्द ही उस विषय में कुशल हो जाता है। तीसरी उपलब्धि है ‘सृजनता’। एकाग्रता से ही मौलिकता का विकास होता है और चैथी उपलब्धि है’ जीवन के परम उद्देश्य लोक सेवा एवं लोक कल्याण का 
बोध। जब व्यक्ति किसी कार्य के प्रति एकाग्र होता है तो उस एकाग्रता के फलस्वरूप लोक कल्याण का स्पष्ट बोध होने लगता है। उसे यह सारी सृष्टि तथा इसमें पलने वाले प्रत्येक जीव मात्र से आत्मीयता गहरी होती है। ऐसे बौद्धिक व्यक्ति के द्वारा ही वसुधा को कुटुम्ब बनाने की अवधारणा साकार होगी। 
    वर्तमान से भागने और अतीत को याद करने या भविष्य की कल्पनाओं में खोए रहने से जीवन अंधकार से घिर जाता है और जीवन की क्षमताएँ इस आवरण में ढक जाती है। इसी कारण व्यक्ति का जीवन मनोरोगी बन जाता है। वह वर्तमान में ठहरता ही नहीं और अपने अतीत की स्मृतियों या भविष्य की कल्पनाओं में खोया रहता है। इस परिस्थिति से बचने का एकमात्र उपाय यही है कि वर्तमान की महत्ता को स्वीकारा जाए, वर्तमान में जीने का अभ्यास किया जाए एवं वर्तमान समय का बेहतर सुनियोजन किया जाए। केवल वर्ततान ही व्यक्ति के अतीत को परिवर्तित करने व भविष्य को गढ़ने की क्षमता रखता है, लेकिन वर्तमान का सामना करने में व्यक्ति को घबराहट महसूस होती है। वर्तमान में जीने से हमारे अंदर छिपी हुई क्षमताओं व शक्तियों के आवरण हटते हैं और स्वयं के अस्तित्व से हमारा परिचय होता है। मनुष्य का जन्म तो सहज होता है लेकिन मनुष्यता उसे कठिन परिश्रम से प्राप्त करनी पड़ती है। 
    मानव जीवन के महत्त्वपूर्ण लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हमें आज से ही वर्तमान में जीवन जीने का संकल्प लेना चाहिए और अपने जीवन में आने वाली अतीत की स्मृतियों से सीखने का प्रयास करना चाहिए और भविष्य की कल्पनाओं को साकार करने की तैयारी वर्तमान समय में करनी चाहिए। वर्तमान जीवन ही हमें बौद्धिक, होशपूर्ण, जाग्रत व उत्साही बनाता है। ‘हर दिन नया जन्म और हर रात नई मौत’ के शक्तिदायी तथा पके हुए सूत्र को जीवन में धारण करना चाहिए। जिस व्यक्ति को जीवन में किसी भी पल मृत्यु के आगमन का ज्ञान होता है। ऐसा व्यक्ति अपने कर्तव्यों के प्रति हमेशा सजग रहता है। 
    भविष्य वर्तमान का प्रतिफल तथा परिणाम है। हमारे वश में भविष्य नहीं है। वर्तमान के बाद जो आएगा, वही भविष्य है, परंतु यह आने वाला है, हमारे वश में नहीं है। जो गुजर चुका है, हमारे हाथ से निकल चुका है, आँखों से ओझल हो चुका है, वह अतीत है। यह भी हमारे वश में नहीं है, परंतु इसे मिटा नहीं सकते। हाँ, इसका प्रायश्चित अवश्य कर सकते हैं। भविष्य और अतीत दो छोर हैं, एक आगे का छोर है तो दूसरा पीछे का और दोनों ही हमारे हाथ में नहीं हैं, केवल वर्तमान का पल ही है, जो हमारे वश में हैं। जो समय गुजर गया, वह वापस नहीं आने वाला है। एक ही नदी के पानी में दो बार खड़ा नहीं हुआ जा सकता; क्योंकि नदी का पानी निंरतर प्रवाहित होता रहता है। दूसरी बार खड़े होने पर वह पानी आगे बढ़ चुका होता है। ठीक ऐसे ही वर्तमान क्षण एवं पल परिवर्तित होकर अतीत बन जाते हैं। 
    अतीत की यादें एवं भविष्य के सपने जीवन की रूकावटें हैं। हमारे हाथ में न तो अतीत है और न ही भविष्य, दोनों ही हमसे दूर हो गए हैं, केवल हमारे नजदीक एवं निकट है तो वर्तमान का क्षण। यही वर्तमान का क्षण ही सच एवं यथार्थ है। अतः इसी का सदुपयोग करना सीखना चाहिए। इसी में जीने का अभ्यास करना चाहिए। जो वर्तमान को साध लेता है, वह अगला-पिछला, सभी को साध लेता है। वर्तमान में विभूतियाँ, उपलब्धियों का अंबार भरा पड़ा है। हम इसे जीवन में करके तथा इसमें झाँककर तो देखे। यही प्रकृति का शाश्वत संदेश सदैव से है, यही जीवन है, यही साधना है और इसी वर्तमान के प्रत्येक क्षण को हमें अपने जीवन में साधना है।
    ‘‘ऐ मन! तू दूर मत जा, संसार की कृत्रिमता में भटक जाएगा। ऐ मन! तू पीछे मत लौट, अतीत के पंक में धँस जाएगा। ऐ मन! तू क्षण-क्षण, पल-पल वर्तमान में जी ले, इसके सौंदर्य को पी ले, वरना ये जल पराया हो जाएगा।’’ मन की दुनिया सबसे महत्त्वपूर्ण है, जो हमें हर पल उठाती व गिराती रहती है। इसका सृजन हम स्वयं करते हैं। यह वह दुनिया है, जो हमें हर पल प्रेरित करती रहती है। इसलिए इसे ऊर्जापूर्ण एवं प्रेरक होना चाहिए न कि अवसादग्रस्त बनाने वाली। इसे ऊर्जावान व प्रेरक बनाए रखने के लिए अविरल प्रयास, बौद्धिक तथा प्रेरणादायी विचारों वाली पत्र-पत्रिकाओं का गहराई से अध्य्यन अति आवश्यक है।
पता- बी-901, आशीर्वाद, उद्यान-2
एल्डिको, रायबरेली रोड, लखनऊ मो0 9839423719

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