‘‘सा विद्या या विमुक्तये’’ हमारी शिक्षा का उद्देश्य सदैव से रहा है। आज हमारा समाज जिस कगार पर खड़ा है इससे लगता है कि हम अपने मानवीय मूल्यों को भूलते जा रहे हैं। शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य होना चाहिए अच्छे संस्कारों का निर्माण, अच्छे आचरण और अच्छा चरित्र।
वही शिक्षा पद्धति संतोषप्रद गिनी जाती है जिसका उद्देश्य व्यक्ति का संतुलित विकास करना हो और जो ज्ञान व विवेक दोनों पर ध्यान दे। शिक्षा जीवन व्यवहार सिखाती है जीवन संघर्ष के लिए तैयार करती है। शिक्षा जीवन निर्माण की प्रयोगशाला है, जहाँ सच्चे, सभ्य और चरित्रवान नागरिकों को ढाला जाता है।
महाभारत में कहा है - नास्ति विद्या समं चक्षु! विद्या के समान कोई नेत्र नहीं। शिक्षा तीसरा नेत्र है। सही शिक्षा प्राप्त मानव प्रज्ञावान बन सकता है। महात्मा गांधी का कहना था कि- शिक्षा का सबसे बड़ा मकसद बालकों में स्वविवेक जगाना है। हमें भारत को विकसित व महाशक्ति बनाना है तो हमें अपनी प्रारम्भिक शिक्षा प्रणाली को सुदृढ़ बनाना होगा। वर्तमान समय में हमें प्राचीन भारतीय शिक्षा को पुनः व्यावहारिक रूप में क्रियान्वित करने की आवश्यकता है।
‘जय भारत, जय जगत’. जय शिक्षा!
शशिकान्त द्विवेदी. (राजस्थान)
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