रंजना फतेपुरकर की कृति मैं अहिल्या हूं का लोकार्पण



 इंदौर  November - वरिष्ठ लेखिका रंजना फतेपुरकर की कृति "मैं अहिल्या हूँ" का लोकार्पण रंजन कलश द्वारा प्रीतमलाल दुआ सभागृह में  31 October 2021 आयोजित समारोह में सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय,उज्जैन के कुलानुशासक,हिंदी विभागाध्यक्ष एवं समालोचक प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने की। मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ देवेन्द्र जोशी थे। विशिष्ट अतिथि युवराज कुमार श्रीमंत यशवंतराव होलकर के प्रतिनिधि श्री संदीप दहिसरकर,महेश्वर थे। संचालन श्री संतोष मिश्रा ने किया।
    प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने अध्यक्षीय उदबोधन में कहा-देवी अहिल्या असाधारण शासिका थीं वे समूचे विश्व इतिहास में अद्वितीय हैं। उनके व्यक्तित्व और कार्यों में भगवान श्री राम,कृष्ण,विक्रमादित्य,और भोज की विशेषताएं समाहित हैं। वे सही अर्थों में लोकमाता हैं, जिन्होंने विद्या,कला,व्यवसाय,पर्यटन,संरक्षण,समाज कल्याण जैसे सभी क्षेत्रों में कार्य किया। तीस वर्षों के राज्यकाल में उन्होंने वह कर दिखाया जी अनेक शताब्दियों में संभव नहीं। लेखिका रंजना फतेपुरकर ने देवी अहिल्या के जीवन पर केंद्रित आत्मकथात्मक उपन्यास का सृजन कर हिंदी में गहरे अभाव की पूर्ति की है। "मैं अहिल्या हूँ" पुस्तक अत्यंत रोचक 
शैली में देवी अहिल्या द्वारा किए गए कार्यों,व्यक्तित्व और जीवन अनुभवों को साकार करती है। यह कृति भारतीय संस्कृति,जीवन दर्शन और मूल्यों को जीवंत करती है।
    शिक्षाविद डॉ देवेंद्र जोशी ने कहा कि रंजना फतेपुरकर की कृति "मैं अहिल्या हूँ" पारंपरिक मूल्य और जीवन आदर्शों को सहेजने की दृष्टि से  महत्वपूर्ण कृति है। जिस साहित्य में अपनी मिट्टी की खुशबू होती है वही साहित्य अपने समय और समाज का सही प्रतिनिधित्व करता है। यह कृति एक साधारण महिला के असाधारण कार्यों का चित्रण है।इसे हर किसिको पढ़ना चाहिए।
    रंजना फतेपुरकर ने माँ अहिल्या देवी के भावों को उन्हींके शब्दों में व्यक्त करते हुए कहा कि...जब तक शिव की सत्ता इस ब्रम्हांड में है....मेरा अस्तित्व कायम रहेगा....मंदिरों की घण्टियों में....आरती की धुनों में....वेदों की ऋचाओं में मेरे स्वर गूंजते रहेंगे....इंदूर के देवालयों में....नर्मदा की कल कल में.....मेरी प्रार्थना के स्वर शामिल रहेंगे....शिवमंदिर में जलती पंचारती की ज्योत में मेरा अस्तित्व शामिल रहेगा.....मैं यहीं हूँ..... मैं यहीं हूँ.... मैं यहीं हूँ.....।
    रंजन कलश के सचिव श्री संतोष मिश्रा ने अपने सफल संचालन में कहा-  देवी अहिल्या ने जिन विषम परिस्थितियों के बावजूद जिस त्याग और तपस्या से शासन चलाया वो इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। संतोष जी ने युवराज कुमार श्रीमंत यशवंतराव होलकर और इतिहासकार श्री घनश्याम होलकर के शुभकामना संदेश का भी वाचन किया।
    लोकार्पण में बड़ी संख्या में साहित्यकार, समाजसेवी और गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। जैसे कि रंजन कलश के सचिव श्री संतोष मिश्रा जी ने जानकारी दी।

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