सफलता पाने के लिए ईश्वर को मानना नहीं, ईश्वर को जानना भी जरूरी - श्री विश्वात्मा 

उदलगुड़ी में वीपीआई द्वारा आयोजित सफलता अध्ययन शिविर का तीसरा दिन
सफलता पाने के लिए ईश्वर को मानना नहीं, ईश्वर को जानना भी जरूरी - श्री विश्वात्मा 

26 मार्च, टंगला, उदालगुरी, असम। राजनीति सुधारकों की ट्रेनिंग के तीसरे दिन चरित्र निर्माण दांपत्य जीवन और अध्यात्म के बारे में समझाया गया। राजनीति सुधार पर दर्जनों पुस्तकों के लेखक विश्वात्मा ने आए हुए प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि सफलता के लिए सबसे पहली जरूरत है कि ईश्वर में रटी-रटाई तरीके से केवल विश्वास न किया जाए अपितु ईश्वर की सत्ता को जानने की कोशिश भी किया जाए। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार नशीली दवा शरीर में काम नहीं करती उसी प्रकार ईश्वर के विषय में फैला हुआ अंधविश्वास इंसान को विफलता के के दलदल में धकेल देता है। 
    विश्व परिवर्तन मिशन के प्रणेता विश्वात्मा भरत गांधी ने कहा कि बिना परिश्रम के सफलता नहीं मिल सकती। लेकिन परिश्रम करके भी सफलता जरूरी नहीं, कि मिल ही जाए। यह देखना होता है की प्रकृति ने अपने अंदर जो जन्मजात गुण दिया है, क्या उसके फलने-फूलने की अनुमति संसार के नियम कानून, संविधान और सामाजिक और पारिवारिक संस्कार देते हैं या नहीं? उन्होंने कहा कि संसार के नियम, कानून, संस्कार और परंपराएं नदी का वह पानी है जिसमें अपने को तैरना होता है। नदी का पानी जिस दिशा में बह रहा है हमें उसी दिशा में जाना हो तो कम परिश्रम से अधिक दूरी तय कर लेते हैं लेकिन नदी के धारा के विपरीत जाना हो तो ज्यादा परिश्रम से ही सफलता कम मिलती है। इसलिए आदर्श कानूनी और संवैधानिक व्यवस्था वही है जिसमें हर व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास और उसकी योग्यता को फलने-फूलने के लिए कानून बनाए जाएं। ऐसे ही धार्मिक संस्कार बनाए जाएं और ऐसा ही संविधान बनाया जाए। श्री विश्वात्मा ने कहा कि इसीलिए राज्य के वर्तमान ढांचे में भारी संशोधन की जरूरत है।
    श्री विश्वात्मा ने आगे कहा कि अपने को पहचानने का काम खुद अपना है। पहचानने के बाद परिश्रम करने की जिम्मेदारी भी खुद अपने ऊपर होती है। लेकिन अगर कुछ कानून दिखाई पड़ जाएं, जो अपने पैरों की बेड़ियां हैं और अपने को आगे बढ़ने में बाधाएं तो उन कानूनों को बदलने के लिए सामूहिक प्रयत्न की जरूरत होती है। श्री विश्वात्मा भरत गांधी ने कहा कि राजनीति सुधारकों की ट्रेनिंग में व्यक्ति के आत्मिक विकास से लेकर उसके सामूहिक विकास के लिए जरूरी कानूनी और संवैधानिक व्यवस्था में सुधार का प्रशिक्षण दिया जाता है।
Pradeep ji Pal 
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