4 से 10 अक्टूबर - यू.एन. विश्व अन्तरिक्ष सप्ताह पर हार्दिक बधाइयाँ!

अन्तरिक्ष तकनीकी का उपयोग मानव जाति के भविष्य को और

सुरक्षित बनाने के लिए होना चाहिए!

‘‘नारी शक्ति के रूप में तीन ‘राकेट वीमेन’ ने भारत का गौरव अन्तरिक्ष जगत में बढ़ाया’’

 

- प्रदीप कुमार सिंह

               

संयुक्त राष्ट्र संघ के सहयोग से वल्र्ड स्पेस वीक एसोसिऐशन द्वारा प्रतिवर्ष 4 से 10 अक्टूबर तक विश्व अन्तर्राष्ट्रीय सप्ताह सारे विश्व में मनाया जाता है। विश्व अंतरिक्ष सप्ताह में उपग्रह नेविगेशन से मानव जाति को होने वाले लाभों पर प्रकाश डाला जाता है। हम कई सुधार और ब्रांड के नए वैश्विक नेवीगेशन उपग्रह सिस्टम में तीसरी पीढ़ी जीपीएस और गैलीलियो के अन्वेषण को सड़क, शिपिंग, कृषि, आपदा और कई अन्य क्षेत्रों में अभूतपूर्व विकास के रूप में देख रहे हैं। साथ ही अपने ही स्मार्टफोन में जीपीएस रिसीवर की मदद से हम अपने रास्ते तथा स्थानों को स्वयं खोज सकते हैं। विश्व अंतरिक्ष सप्ताह में समाज के लिए उपग्रह नेविगेशन से मानव जाति को वर्तमान तथा भविष्य में होने वाले लाभों पर प्रकाश डाला जाता है।

                विश्व में आज अंतरिक्ष-विज्ञान के क्षेत्र में जो होड़ लगी हुई है, उसमें हमारा देश भारत भी इस क्षेत्र में किसी से पीछे नहीं है। हमारे देश ने इस क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल की हैं। अंतरिक्ष में विज्ञान के आविष्कार के लिए छोड़े गए उपग्रह विश्व को चकित करने वाले रहे हैं। विश्व में अंतरिक्ष यात्रा की शुरूआत रूस ने कृत्रिम उपग्रह छोड़कर की थी। उसके बाद अमेरिका ने भी इस क्षेत्र में पदार्पण किया और उसने 1958 को अपना पहला उपग्रह छोड़ा। भारत ने सर्वप्रथम स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ ही वर्ष बाद थुम्बा से अपना प्रथम साउडिंग राकेट छोड़कर अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में पदार्पण किया था। 1974 में भारत में अंतरिक्ष में अपना पहला उपग्रह आर्यभट्ट स्थापित किया था।

                भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रम डा. विक्रम साराभाई की संकल्पना है, जिन्हें भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रम का जनक कहा गया है। वे वैज्ञानिक कल्पना एवं राष्ट्र-नायक के रूप में जाने गए। 1957 में स्पूतनिक के प्रक्षेपण के बाद, उन्होंने कृत्रिम उपग्रहों की उपयोगिता को भापा। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू, जिन्होंने भारत के भविष्य में वैज्ञानिक विकास को अहम् भाग माना, 1961 में अंतरिक्ष अनुसंधान को परमाणु ऊर्जा विभाग की देखरेख में रखा। परमाणु ऊर्जा विभाग के निदेशक श्री होमी भाभा, जो कि भारतीय परमाणु कार्यक्रम के जनक माने जाते हैं, 1962 में अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति (इनकोस्पार) का गठन किया, जिसमें डा साराभाई को सभापति के रूप में नियुक्त किया गया था। भारतीय स्पेस प्रोग्राम एवं रिमोट सेन्सिग तकनीकी के जनक डा0 विक्रम साराभाई के जन्म दिवस 12 अगस्त को पूरा देश नेशनल रिमोट सेन्सिग डे के रूप में मनाता है।

                प्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं पूर्व राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम की सपनों की उड़ान 1969 में नया मोड़ लेती है जब डा. कलाम को देश के पहले स्पेस लांच प्रोजेक्ट का डायरेक्टर बनाया गया। रोहिणी उपग्रह की सफलता से तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी काफी प्रभावित हुई। डा0 कलाम को वैज्ञानिक एमजीके मेनन, प्रो. विक्रम साराभाई, वैज्ञानिक श्री सतीश धवन, वैज्ञानिक श्री ब्रह्मप्रकाश आदि ने इंजीनियर की पहचान दी। उस खोजी वैज्ञानिक की कहानी जिसके साथ बेसुमार काबिल लोगों की टीम थी। डा. कलाम को मिसाइल मैन कहे जाने से पहले का संघर्ष भरा जीवन रहा है। डा. कलाम ने देश को अग्नि, पृथ्वी और ब्रह्मोस जैसी मिसाइलों की सौगात दी। भारत ने स्वयं को परमाणु शक्ति सम्पन्न देश घोषित कर दिया। डा. कलाम ने अपने मकसद में कामयाब होने के लिए पूरे जीवन अविवाहित रहने का निर्णय लिया था। वह भारत को वैज्ञानिक जगत में सम्मानजनक स्थान दिलाने में पूर्व प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू, पूर्व

प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी तथा पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेई को श्रेय देते थे। विज्ञान की दुनिया में चमत्कारिक प्रदर्शन के कारण ही राष्ट्रपति भवन के द्वार इनके लिए स्वतः खुल गए। डा. कलाम के पास भौतिक दृष्टि से न घर, न धन और न गाड़ी, न संतान कुछ नही था। वह सादगी उनके पूरे व्यक्तित्व में दिखती थी।

                6 सितम्बर 2019 की रात्रि मिशन चंद्रयान-2 की कामयाबी के लिए 130 करोड़ लोग प्रार्थना कर रहे थे। दूसरे दिन प्रातः प्रधानमंत्री श्री नरेन्दमोदी खुद उस वक्त इसरो सेंटर में मौजूद थे और उन्होंने इसरो चीफ श्री के. सिवन की हिम्मत बढ़ाते हुए उन्हें गले लगा लिया। हौसला अफजाई में कहा कि देश को आप पर तथा आपकी वैज्ञानिक टीम पर गर्व है। प्रधानमंत्री ने कहा, भले ही आज रुकावटें हाथ लगी हों, लेकिन इससे हमारा हौसला कमजोर नहीं पड़ा, बल्कि और बढ़ा है। भले ही हमारे रास्ते में आखिरी कदम पर रुकावट आई हो, लेकिन हम मंजिल से डिगे नहीं है। वैसे तो इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान) पहले भी अपनी क्षमता का लोहा पूरी दुनिया को मनवा चुका है मगर चंद्रयान टू ने अन्तरिक्ष के क्षेत्र में भारत का स्थान महाशक्ति की श्रेणी में शामिल कर दिया है।

                हमारे आसपास कई महिलाएं हैं जो अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में रोजाना नए आयाम जोड़कर सफलता का आसमान छू रही हैं। दुनिया में भारत का नाम रोशन कर रही हैं। विशेषकर ‘तीन राॅकेट वीमेन’ इस प्रकार है:- (1) सुश्री अनुराधा टीके इसरो की वरिष्ठतम महिला वैज्ञानिक हैं। इसरो में पहली महिला सैटेलाइट प्रोजेक्ट डायरेक्टर बनने का गौरव उन्हें हासिल है। वर्तमान में वह इसरो के कृत्रिम कम्युनिकेशन सैटेलाइट की निदेशक हैं। इससे पहले वह भारतीय जियोसैट की प्रोग्राम डायरेक्टर थीं। अनुराधा कई भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों में अग्रणी रही हैं। (2) पांच अगस्त को मिशन चंद्रयान-2 को लेकर जो उत्सुकता पूरे देश में देखी गई, उस मिशन का संचालन इसरो की महिला वैज्ञानिक सुश्री मुथैया वनीता के हाथ में है। यह इसरो के इतिहास में पहला मौका था जब सबसे महत्वपूर्ण अंतग्रहीय मिशन का जिम्मा एक महिला वैज्ञानिक को दिया गया। बतौर प्रोजेक्ट डायरेक्टर मुथैया वनीता ने चंद्रयान-2 की योजना, प्रक्षेपण से लेकर लैंडिंग तक पूरी प्रक्रिया का नेतृत्व किया है। चेन्नई की मुथैना 32 साल से इसरो की सेवा कर रही हैं। साइंस जर्नल ‘नेचर’ ने उनका नाम 2019 की पांच सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिकों की श्रेणी में रखा है। (3) भारत की ‘राकेट महिला’ के रूप में मशहूर हो चुकीं एयरोस्पेस इंजीनियर सुश्री रितु करिधाल की मिशन मंगलयान को सफल बनाने में अहम भूमिका रही। 5 नवंबर, 2013 को लान्च हुए मंगलयान प्रोजेक्ट की डिप्टी आपरेशन डायरेक्टर थीं। लखनऊ के मध्य वर्गीय परिवार में जन्मीं रितु 1997 में इसरो से जुड़ गईं। इसरो के हालिया मिशन चंद्रयान-2 में वह बतौर मिशन डायरेक्टर सेवा दे रही हैं। उन्होंने भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरू से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में डिग्री प्राप्त की है। उन्हें मंगलयान की सफलता के लिए इसरो टीम पुरस्कार दिया गया।            

                स्पेस मिशन से विभिन्न क्षेत्रों में क्रान्तिकारी परिवर्तन आने की पूरी संभावना है। आज भारत का वैज्ञानिक भारत का गौरव बढ़ाने के लिए जिस प्रकार से अपना सब कुछ न्यौछावर करते हुए विज्ञान के क्षेत्र में नित नये मील का पत्थर स्थापित कर रहे हैं वह चमत्कृत करने वाला है। इसरो के आगामी अभियान मानव युक्त गगनयान मिशन के प्रति न केवल भारतीय समाज वरन दुनिया के वैज्ञानिक आशा भरी निगाह से भारत की तरफ देख रहे हैं। इसी प्रकार इसरो के मंगलयान मिशन भी अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जाता है। सूर्य का अध्ययन करने की योजना वाला इसरो का आदित्य टू-वन मिशन भी पूरी दुनिया के लिए भविष्य में बड़ी उपलब्धि बनकर उभरेगा।

                अब तक अमेरिका और रूस के नाम लोगों को अंतरिक्ष में भेजने की उपलब्धि ही रही है, लेकिन इन दोनों ही देशों के साथ इस उपलब्धि में कही न कही भारत का नाम भी जुड़ा है। भारतीय मूल की सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष में दोबारा जाने वाली पहली महिला बन गई हैं। गुजरात से ताल्लुक रखने वाली सुनीता विलियम्स दूसरी भारतीय महिला हैं जिन्होंने बतौर अंतरिक्ष विज्ञानी अंतरिक्ष की यात्रा की। सुनीता विलियम्स से पहले नासा की ओर से भारतीय मूल की कल्पना चावला ने अंतरिक्ष की यात्रा की थी, लेकिन वापसी में एक दुखद दुर्घटना में उनकी और उनके दल के सभी सदस्यों की मौत ने दुनिया को झकझोर डाला था।

                सुनीता विलियम्स ने 1998 में नासा (नेशनल एयरोनाटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन, अमेरिका) द्वारा चुनी गईं और अंतरिक्ष विज्ञानी बन गई। सुनीता विलियम्स डिस्कवरी में सवार होकर नौ दिसंबर, 2006 को आईएसएस गईं और 22 जून 2007 को धरती पर लौटी। रूस ने अपने अंतरिक्ष मिशन में वायु सेना के स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा को शामिल किया था तो अमेरिका ने भारत में जन्मी कल्पना चावला और भारतीय मूल की सुनीता विलियम्स को लेकर भारतीयों की प्रतिभा का लोहा माना। 

                अमेरिका का अन्तरिक्ष संस्थान नासा विश्व की सबसे अग्रणी पंक्ति में है। अन्तर्राष्ट्रीय अन्तरिक्ष स्टेशन या केन्द्र (आईएसएस) बाहरी अन्तरिक्ष में अनुसंधान सुविधा या शोध स्थल है जिसे पृथ्वी की निकटवत कक्षा में स्थापित किया गया है। वर्तमान समय में आईएसएस अब तक बनाया गया सबसे बड़ा मानव निर्मित उपग्रह है। आईएसएस कार्यक्रम विश्व की कई देशों की स्पेस एजेंसियों का संयुक्त उपक्रम है। इसे बनाने में अमेरिका की नासा के साथ रूस की रशियन फेडरल स्पेस एजेंसी (आरकेए), जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (जेएएक्सए), कनाडा की कनेडियन स्पेस एजेंसी (सीएसए) और यूरोपीय देशों की संयुक्त यूरोपीयन स्पेस एजेंसी (ईएसए) मिलकर अभूतपूर्व तथा क्रान्तिकारी काम कर रही हैं। इनके अतिरिक्त ब्राजीलियन स्पेस एजेंसी (एईबी) तथा इटालियन स्पेस एजेंसी (एएसआई) भी नासा के साथ कार्यरत हंै। अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन अंतरिक्ष में स्थित एक विशाल वेधशाला के तौर पर कार्य करता है। अन्य अंतरिक्ष यानों के मुकाबले इसके कई फायदे हैं जिसमें इसमें रहने वाले एस्ट्रोनाट्स को अधिक समय तक अंतरिक्ष में रहकर खोंजे करने का मौका मिलता है।

                सृष्टि का गतिचक्र एक सुनियोजित विधि व्यवस्था के आधार पर चल रहा है। ब्रह्माण्ड में अवस्थित विभिन्न नीहारिकाएं ग्रह-नक्षत्रादि परस्पर सहकार-संतुलन के सहारे निरन्तर परिभ्रमण विचरण करते रहते हैं। अपना भू-लोक सौर मंडल के वृहत परिवार का एक सदस्य है। सारे परिजन एक सूत्र में आबद्ध हैं। वे अपनी-अपनी कक्षाओं में घूमते तथा सूर्य की परिक्रमा करते हैं। सूर्य स्वयं अपने परिवार के ग्रह उपग्रह के साथ महासूर्य की परिक्रमा करता है। इतने सब कुछ जटिल क्रम होते हुए भी सौर, ग्रह, नक्षत्र एक दूसरे के साथ न केवल बंधे हुए हैं वरन् परस्पर अति महत्वपूर्ण आदान-प्रदान भी करते हैं।  पृथ्वी का सूर्य से सीधा सम्बन्ध होने के कारण सौर-परिवर्तन से यहाँ का भौगोलिक परिवेश और पर्यावरण अत्यन्त प्रभावित होता है। यह सृष्टि केवल मनुष्य के लिए ही नहीं है वरन् इस पर जीव-जन्तुओं व वनस्पति का भी पूरा अधिकार है। अतः मनुष्य को अपार संसाधनों का उपयोग विवेकी ढंग से करना चाहिए तथा उन तत्वों तथा प्राकृतिक शक्तियों का सम्मान करना चाहिए जिन्होंने अरबों वर्ष पूर्व यह प्यारी धरती सहित ब्रह्माण्ड हमें सौंपा है।

                विश्व ईश्वर के बारे में बहुत बात करता है। किन्तु हम ईश्वर के बारे में थोड़ा जानते हैं। ईश्वर एक अद्भुत शक्ति है। यह ब्रह्माण्ड उसकी अनन्त अभिव्यक्ति है। जैसा हमारा विश्वास होता है, यूनिवर्स हमारे समक्ष उसे साकार कर देता है। अब इन्सानी सोच को बदल डालने के लिए अनेक अवसर आ जुटे हैं। मानव मन में जगमगाते हुए ये ग्रह-नक्षत्र, आकाशगंगायें और नीहारिकायें चिरअतीत से यह जिज्ञासा जगाते रहे हैं कि क्या इस विराट ब्रह्माण्ड में हम अकेले ही हैं अथवा पृथ्वी से बाहर और भी कहीं जीवन है। अब इन्सानी सोच को बदल डालने के लिए अनेक अवसर आ जुटे हैं। आज जहाँ हम  अपनी छोटी सी धरती को द्वीपों और देशों में बांटते फिर रहे हैं। इसके छोटे से टुकड़े के लिए महाविनाश के सरंजाम जुटाते फिरते हंै, वहीं अब वैज्ञानिकों ने चेतावनी दे डाली है कि मानव अभी से अपने को विश्व परिवार का ही नहीं वरन् ब्रह्माण्ड परिवार का सदस्य मानकर अपनी संकुचित सोच में बदलाव लाए। नया युग प्रस्तुत करने वाली इस नयी सदी में मनुष्य देश-जाति और धर्मो की संकीर्ण तथा अज्ञानतापूर्ण परिधि में बँधा न रहेगा। समूची पृथ्वी एक राष्ट्र का रूप लेगी, एक मानवतावादी विज्ञान विकसित होगा, एक भाषा बनेगी, एक मुद्रा बनेगी और एक संस्कृति पनपेगी। अगले दिनों हमें अपना परिचय धरती के निवासी के रूप में देना पड़ेगा तभी हम ब्रह्माण्ड के अन्य सुविकसित प्राणियों से एकता, आत्मीयता तथा ज्ञान-विज्ञान का आदान-प्रदान स्थापित कर पाएँगे।

                महान वैज्ञानिक स्टीफन हाकिंग को मानव द्वारा किया जा रहा निरंतर पर्यावरण क्षरण, आतंकवाद, परमाणु बमों की होड़ जैसे कार्य उन्हें काफी खलते थे। वे बहुधा कहते थे- “हम अपने लालच और मूर्खता के कारण खुद को नष्ट करने के खतरे में हैं। हम इस छोटे, तेजी से प्रदूषित हो रहे और भीड़ से भरे ग्रह पर एकमात्र अपनी ओर देखते नहीं रह सकते। हम एक औसत तारे के छोटे से ग्रह पर रहने वाली बंदरों की उन्नत नस्ल हैं लेकिन हम ब्रह्मांड को समझ सकते हैं। यह हमें धरती के अन्य जीवों से कुछ खास बनाता है। मेरा विश्व एकता के प्रबल समर्थक के रूप में विगत 41  वर्षों के अनुभव के आधार पर विश्वास है कि युद्धों पर, सुरक्षा के नाम पर तथा युद्धों की तैयारी पर होने वाले व्यय को बचाकर उस अपार धनराशि, नवीनतम वैज्ञानिक ज्ञान, अति आधुनिक तकनीकी तथा मानव संसाधन से विश्व के प्रत्येक नागरिक को रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा सुरक्षा से परिपूर्ण समृद्ध जीवन प्रदान किया जा सकता है। घायल धरती की भारतीय संस्कृति के आदर्श वसुधैव कुटुम्बकम् तथा भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51 में निहित मानवीय तथा विश्व एकता के विचार ही एकमात्र ‘दवा’ है। अन्तरिक्ष तकनीकी का उपयोग मानव जाति के भविष्य को और अधिक सुरक्षित तथा खुशहाल बनाने के लिए होना चाहिए।

 

लेखक का पता- बी-901, आशीर्वाद, उद्यान-2, एल्डिको, रायबरेली रोड, लखनऊ-226025

मो0 9839423719

 

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