भाषा कोई भी हो हमारी भावना वसुधैव कुटुम्बकम् वाली

 भाषा कोई भी हो, इस देश की अभिव्यक्ति आपसी प्रेम की स्थापना है। भारतीय दर्शन विश्व को एक परिवार के रूप में देखता है। वसुधैव कुटुम्बकम् की इस भावना की जनक हमारी विभिन्न भाषाएं हैं।

मशहूर शायर रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी पर केन्द्रित हिंदी उर्दू साहित्य अवार्ड कमेटी का 28वां पांच दिवसीय साहित्यिक सम्मेलन के तीसरे दिन आज लखनऊ सहित जैसे देश-विदेश से जुड़े रचनाकारों को मुम्बई के डीजी विलास हाल से सम्बोधित करते हुए पूर्व राज्यपाल रामनाईक ने व्यक्त किये। इस अवसर पर प्रख्यात पटकथा लेखक दानिश जावेद ने उन्हें कमेटी की ओर से साहित्य सिरोंमणि सम्मान से अलंकृत किया। यह पुस्तक पुरस्कार उनकी मूल मराठी से 10 भाषाओं में अनुवादित हो चुकी और दृष्टिहीनों के लिए तीन भाषाओं में ब्रेल लिपि में प्रकाषित हो चुकी संस्मरणात्मक पुस्तक 'चरैवेति-चरैवेति' के लिये दिया गया।

डा.सागर त्रिपाठी के संचालन में चले समारोह में पूर्व राज्यपाल ने रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी पर आयोजन के लिए कमेटी को शुभकामनाएं दीं। कमेटी के तीन दषकों के आयोजनों की चर्चा करते हुए पिछले जलसे का अपने उद्घाटन करने के किस्से साझा किये। उन्होंने कमेटी व महामंत्री अतहर नबी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह कमेटी हिन्दी और उर्दू के रचनाकारों को पुरस्कृत करने के साथ संगोष्ठियों के माध्यम से वर्तमान और भावी पीढ़ी के लिए रचनाकारों को प्रेरक रूप में पेश करती है। ये काम बौद्धिक सोच, भाषायी सौहार्द, सकारात्मक समझ और एकता को बढ़ावा देने वाला है। लखनऊ षहर यहां की तहजीब को याद करते हुए उन्होंने अपनी पुस्तक के बारे में विस्तार से बातें साझा कीं।

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