ईश्वर को जानना और उससे प्रेम करना ही हमारे जीवन का उद्देश्य होना चाहिए!

-डॉ. जगदीश गाँधी, संस्थापक-प्रबन्धक

सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ

(1) विश्व पटल पर आज विभिन्न धर्मों के आपसी टकराव की संभावनाएं बढ़ती जा रहीं हैं:-

            सम्पूर्ण विश्व में धार्मिक एकता की जितनी जरूरत आज महसूस की जा रही है, उतनी पहले कभी नहीं रही। विश्व पटल पर आज विभिन्न धर्मों के आपसी टकराव की संभावनाएं बढ़ती जा रहीं हैं और ऐसे वातावरण में आज सकारात्मक आदान-प्रदान, सहयोग व आपसी संवाद की अत्यन्त आवश्यकता है। आज जब चारों ओर धर्म और जाति के नाम इतने झगड़े और और युद्ध हो रहे हैं, तब यह आवश्यक है कि हम सभी धर्मों की मूल शिक्षाओं पर ध्यान दें, जो हमें एक ही ईश्वर तक ले जाती हैं। ईश्वर ने सभी धर्मों में एक ही बात कही है कि हे मानव तुम मुझे जानो और मेरी आज्ञाओं का पालन करो व मेरे बताए हुए रास्ते पर चलो। वास्तव में ईश्वर का धर्म तो एक ही है ‘मानवता का धर्म’। रोजाना हमारे प्रत्येक कार्य प्रभु की सुन्दर प्रार्थना बने। ईश्वर को मानने के साथ ही उसको जानकर कार्य करने से हमें लाभ होता है।

(2) धर्म हमें जीवन जीने की कला सिखाता है:-

            प्रत्येक धर्म में अलग अलग युगों में अवतार आए राम, कृष्ण, बुद्ध, ईसा, मोहम्मद, नानक, अब्राहम, महावीर, मोजज, बहाउल्लाह आदि अवतारों के द्वारा दी गई मर्यादा, न्याय, समता, करूणा, एकता, दया, सद्भाव व एकता की शिक्षायें सारी मानवजाति के लिए एक ही परमपिता परमात्मा द्वारा दी गई हैं। इस प्रकार गीता, कुरान, बाइबिल, गुरू ग्रन्थ साहिब, त्रिपिटक व किताबे अकदस में न्याय, भाईचारा, करूणा, त्याग, जो लिखा है वह ईश्वरीय वाणी है। यदि हम इन पवित्र पुस्तकों को पढ़े और इनका सार जीवन में उतार लें तो निश्चित रूप से हम सारी मानव जाति से प्रेम करेंगे। वास्तव में मानवता का धर्म ही शाश्वत है, जो हम सभी को अलग-अलग रास्तों से होते हुए एक ही एक ही मंजिल पर पहुँचाता है और वह मंजिल है ‘परमपिता परमात्मा का सानिध्य’। 

(3) मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना:-

            धार्मिक समन्वय व धार्मिक एकता को बढ़ावा देने में शिक्षा का विशेष महत्व है। इसलिए धर्म को जीवन से व शिक्षा से अलग नहीं किया जा सकता। धर्म हमें जीवन मूल्यों पर चलना सिखाता है, हमारी आध्यात्मिक प्रगति करता है, जिसके बिना शिक्षा अधूरी है। सभी धर्मो की आध्यात्मिक शिक्षा एक ही है। अतः यह आवश्यक है कि हम विभिन्न धर्मो को जानें व सभी के प्रति प्रेमभाव रखे। भारत के प्रसिद्ध कवि महम्मद इकबाल ने लिखा “मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना” अर्थात् दुनिया का हर धर्म आपस में एकता का पाठ पढ़ाते हैं, आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। मानव जीवन का एकमात्र उद्देश्य अपनी नौकरी या व्यवसाय को ईमानदारी तथा सेवा भावना से करते हुए अपनी आत्मा का हर पल विकास करना है।

(4) भारत की धरती पूरे विश्व को एकता व भाईचारे का संदेश देती है:-

            भारत एक ऐसा देश है जिसकी परंपरा हमेशा से ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की रही है। भारत एक ऐसा राष्ट्र है जिसने दुनिया भर में न्याय, गरिमा, अवसर और समृद्धि के हक में आवाज उठाई है। विभिन्नता में एकता की संस्कृति यहां की विशेषता है। भारत को छोड़कर दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं है, जहाँ इतने सारे धर्म के मानने वाले मिल-जुलकर सद्भावना पूर्ण माहौल में रहते हैं। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ अर्थात सम्पूर्ण विश्व को अपना परिवार मानने वाली भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के कारण भारत को विविधताआंे का देश कहा जाता है। भारत के विषय में प्रसिद्ध कहावत है - कोस-कोस पर पानी बदले, चार कोस पर वाणी। इतनी विभिन्नतायें होते हुए भी भारत एक सूत्र में बंधा हुआ है। स्कूल एक ऐसा स्थान है जहाँ सभी धर्म, जाति के बच्चे एक साथ बैठते हैं, एक साथ अध्ययन करते हैं एवं साथ ही खाते व खेलते हैं, ऐसे में यदि प्रारम्भ से ही बच्चों को सही अर्थों में धर्म की महत्ता व भावना से अवगत कराया जाए तो यही बच्चे आगे चलकर एकता व शान्ति से परिपूर्ण खुशहाल समाज की आधारशिला रखेंगे।

(5) आध्यात्मिक ज्ञान ही विश्व में सच्ची शांति, एकता, सद्भाव और स्थिरता सुनिश्चित कर सकता है:-

            स्वामी विवेकानंद के अनुसार धर्म लोगों को संगठित करने का कार्य करता है और भाईचारे की भावना के साथ समाज को समग्र विकास के पथ पर अग्रसर करता है। आध्यात्मिकता सभी धर्मों का आधार है और यही आध्यात्मिक सूत्र उन्हें एक साथ बांधता है। वास्तव में केवल आध्यात्मिक ज्ञान ही विश्व में सच्ची शांति, एकता, सद्भाव और स्थिरता सुनिश्चित कर सकता है। ऐसे में परिवार, स्कूल तथा समाज को अपने बच्चों को मर्यादा, न्याय, समता, अहिंसा, करूणा, भाईचारा, त्याग, हृदय की एकता, मानवता तथा आध्यात्मिक गुणों की शिक्षा देकर उन्हें परमपिता परमात्मा की सच्ची संतान बनाना चाहिए।

(6) परमपिता परमात्मा तो एक ही है:-

            परमपिता परमात्मा तक जाने का रास्ता अलग-अलग हो सकता है, किन्तु परमपिता परमात्मा तो एक ही है। ऐसे में कोई उसे रामायण और गीता में बताये गये रास्ते से जानता है तो कोई कुरान में दिखाये गये रास्ते से, तो कोई बाईबिल या अन्य धर्म ग्रंथों में बताये गये रास्ते से जानने का प्रयास करता है। और जिसने भी एक ही परमपिता परमात्मा के द्वारा समय-समय पर भेजे गये अवतारों और उनके द्वारा मानव कल्याण के लिए विभिन्न धर्म ग्रंथों में दी गईं शिक्षाओं को जान लिया, वे कभी भी आपस में धर्म के नाम पर लड़ाई नहीं करेंगे। परमपिता परमात्मा ने अपने इन धर्म ग्रन्थों में मानव मात्र की भलाई और कल्याण के लिये तथा मानव मात्र की सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान समस्त मानवजाति को दिया है।

(7) धर्म या मजहब हमें कभी भी आपसी टकराव का मार्ग नहीं दिखातें:-

            बिना धार्मिक एकता के विश्व एकता की कल्पना नहीं की जा सकती, ऐसे में विभिन्न धर्मावलम्बियों के मिलजुल कर विचारों के आदान-प्रदान की आवश्यकता बहुत बढ़ जाती है और इसका महत्व भी बढ़ जाता है। वास्तव में प्रेमपूर्ण आपसी संवाद से बड़े-बड़े युद्ध रोके जा सकते हैं और इसी तरह सारे विश्व में खुशहाली का माहौल बनाया जा सकता है। धर्म या मजहब हमें कभी भी आपसी टकराव का मार्ग नहीं दिखातें। ऐसे में विद्यालय के शांति रूपी पौधशाला में हमें प्रत्येक बालक को सभी युगावतार एवं उनके द्वारा विभिन्न धर्म ग्रंथों में दी गई शिक्षाओं का ज्ञान बचपन से ही कराते हुए उनके मन-मस्तिष्क को विश्व नागरिक के रूप में विकसित करते रहना चाहिए। मेरा पूरा विश्वास है कि ऐसे ही विश्व नागरिकों के द्वारा सारे विश्व में शांति एवं एकता की स्थापना की जायेगी।

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