13 अगस्त - आधुनिक नर्सिंग की ग्लोबल सिस्टर ‘फ्लोरेंस नाइटिंगेल’ की  पुण्य तिथि पर शत शत नमन!


पीड़ितों की सेवा ईश्वर की सबसे बड़ी प्रार्थना है!
- प्रदीपजी पाल, लखनऊ
    आधुनिक नर्सिंग आन्दोलन की जन्मदाता, जख्मों पर मरहम लगाने वाली पहली ग्लोबल सिस्टर, ‘‘माँ ही दुनिया की पहली नर्स है’’ विचार की वाहक, ‘‘द लेड़ी विद द लैंप’’ के नाम से प्रसिद्ध मिस फ्लोरेंस नाइटिंगेल है। करूणा व सेवा की मसीहा फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्म एक समृद्ध और उच्चवर्गीय ब्रिटिश परिवार में 12 मई 1820 को इटली के फ्लोरेंस शहर में हुआ था। इस शहर के नाम से ही इनका नाम फ्लोरेंस रखा गया। इंटरनेशनल काउंसिल आॅफ नर्सेस की घोषणा के अनुसार फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्म दिवस 12 मई को प्रतिवर्ष ‘अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस’ के रूप में पूरे विश्व में मनाया जाता है। इस दिन विश्व भर में स्वास्थ्य सेवाओं में नर्सों के पुनीत तथा पवित्र योगदान को सम्मानित करने तथा उनसे संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा होती है। सारा विश्व फ्लोरेंस नाइटिंगेल को उनकी पीड़ित मानवता की अपार सेवा भावना के लिए याद करता है। 
    फ्लोरेंस नाइटिंगेल बाद में इटली से अपने परिवार के साथ इंग्लैण्ड आ गयी। जीवन का अधिकांश समय पीड़ितों की सेवा करते इंग्लैण्ड में ही बीता। उनके पिता विलियम नाइंटिगेल और मां फेनी नाइटिंगेल थे। विलियम नाइटिंगेल बैंकर थे और काफी धनी थे। परिवार को किसी भी भौतिक चीज की कमी नहीं थी। फ्लोरेंस जब किशोरी थीं उस समय वहां लड़कियां स्कूल नहीं जाती थीं। उस जमाने में बहुत सी लड़कियां तो बिल्कुल नहीं पढ़ती थीं। लेकिन उनके पिता विलियम अपनी बेटियों को पढ़ाने को लेकर बहुत गंभीर थे। उन्होंने अपनी बेटियों को विज्ञान, इतिहास और गणित जैसे विषय पढ़ाए। फ्लोरेंस एक कुशल संख्यिकीशास्त्री भी थी।  
    उन्नीसवीं सदी की परंपरा के मुताबिक 1837 में नाइटिंगेल परिवार अपनी बेटियों को यूरोप के सफर पर ले कर गया। ये उस वक्त बच्चों की तालीम के लिए बहुत जरूरी माना जाता था। इस सफर के तजुर्बे को फ्लोरेंस ने बेहद दिलचस्प अंदाज में अपनी डायरी में दर्ज किया था। वो हर देश और शहर की आबादी के आंकड़े दर्ज करती थी। यूरोप के किस देश में कितने शहरों में कितने अस्पताल हैं। दान-कल्याण की कितनी संस्थाएं हैं, ये बात वो सफर के दौरान नोट करती थी। मां-बाप की मर्जी के खिलाफ फ्लोरेंस लंदन, रोम और पेरिस के अस्पतालों के दौरे करती रहती थी। उन्हें बीमार लोगों की देखभाल करना अच्छा लगता था। इसलिये घरेलू जीवन के आराम और विलासिता को ठुकरा दिया और खुद को बीमारों की सेवा के लिये पूरी तरह से समर्पित कर दिया। उनका मानना था कि हमारे प्रत्येक कार्य ईश्वर की सुन्दर प्रार्थना की तरह होना चाहिए। 
    इंग्लैंड में 1845 से 1849 के बीच भयंकर अकाल पड़ा और अकाल पीड़ितांे की दयनीय स्थिति देखकर फ्लोरेंस नाइटिंगेल अत्यन्त ही द्रवित हो गयी। आयरलैंड में 1845 से 1849 के बीच आलू की फसल पूरी की पूरी खराब हो गई। यहां की लगभग 40 प्रतिशत जनसंख्या अपनी भूख आलू से ही मिटाती थी। इस अकाल का ऐसा असर हुआ कि लगभग 10 लाख लोगों ने देश छोड़ दिया और 10 लाख लोगों की मौत हो गई। फ्लोरेंस ने अपने एक पारिवारिक मित्र से नर्स बनकर अकाल पीड़ितों ने मदद करने की इच्छा प्रकट की। उनका यह निर्णय सुनकर उनके परिजनों और मित्रांे में खलबली मच गयी। परिवार के प्रबल विरोध के बावजूद फ्लोरेंस नाईटेंगल ने अपना इरादा नहीं बदला। उन्होंने अभावग्रस्त लोगों की सेवा तथा चिकित्सा सुविधाओं को सुधारने तथा बनाने के कार्यक्रम आरंभ किये। साल 1850 में नाइटिंगेल दंपति को यह पक्का हो गया था कि उनकी बेटी पीड़ितों की सेवा करने के उद्देश्य से जीवन भर अविवाहित रहेगी। 
    ब्रिटेन के उस काल में अमीर घरानों की महिलाएं नौकरी या व्यवसाय नहीं करती थीं। उनका काम सिर्फ शादी करना और शादी के बाद घर, बच्चे और पति की देखभाल करना होता था। नौकरों को देखना, अतिथियों की देखभाल, पढ़ना, सिलाई-बुनाई और सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेना, यही सब रोजाना करना होता था। लेकिन फ्लोरेंस तो किसी और चीज के लिए ही बनी थीं। जब वह 16 साल की थीं तो उनका मानना था कि भगवान की ओर से उनको पीड़ित लोगों की मदद के लिए कहा गया है। वह नर्स बनना चाहती थीं जो मरीजों और परेशान लोगों की देखभाल करे। जर्मनी में महिलाओं के लिए एक क्रिस्चन स्कूल में उन्होंने नर्सिंग की पढ़ाई शुरू कर दी। वहां उन्होंने मरीजों की देखभाल के अहम हुनर सीखें। वहां उन्होंने अस्पताल को साफ रखने के महत्व के बारे में भी जाना। नर्सिग का व्यावहारिक प्रशिक्षण लंदन के नर्सिंग होम ‘जेंटल विमन ड्यूरिंग इलनेस’ से प्राप्त किया। 
    1854 में रूस और तुर्की के बीच क्रीमियन युद्ध छिड़ गया। इंग्लैंड तुर्की के सैनिकों को क्रीमिया में लड़ने के लिये सहायता उपलब्ध करा रहा था। उस युद्ध में ब्रिटेन, फ्रांस और तुर्की एक तरफ थे तो दूसरी तरफ रूस। ब्रिटिश सैनिकों को रूस के दक्षिण में स्थित क्रीमिया में लड़ने को भेजा गया। जल्द ही बहुत बुरी खबर आई। पता चला कि वहां सैनिक जख्मी होने, ठंड, भूख और बीमारी से मर रहे हैं। उनकी देखभाल के लिए कोई वहां उपलब्ध नहीं है। तुरंत मदद की जरूरत थी। फ्लोरेंस को ब्रिटेन के तत्कालीन युद्ध सचिव सिडनी हर्बर्ट अच्छी तरह जानते थे। उन्होंने क्रीमिया में घायल सैनिकों की देखभाल के लिए नर्सों का एक दल लेकर फ्लोरेंस को पहुंचने को कहा। वह अक्टूबर 1854 में 38 महिला नर्सों का एक दल लेकर वहां पहुंची।  
    फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने अस्पताल की हालत सुधारने पर ध्यान दिया। उनको पता था कि अस्पताल की सही हालत होने पर ही सैनिकों को बचाया जा सकता है। उन्होंने बेहतर चिकित्सीय उपकरण खरीदे। मरीजों के लिए अच्छे खाने का बंदोबस्त किया। नालियों की सफाई करवाई। अपनी टीम के साथ वार्डों की सफाई की। अस्पताल में एक किचन का बंदोबस्त किया। जख्मी सैनिकों की सही से देखभाल की। उनको उचित तरीके से नहाना, जख्मों की ड्रेसिंग करना और खिलाने पर ध्यान दिया। नतीजा यह हुआ कि सैनिकों की मौत की संख्या में गिरावट आई। जब चिकित्सक चले जाते तब वह रात के गहन अंधेरे में लालटेन जलाकर घायलों की सेवा के लिए उपस्थित हो जाती। फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने मरीजों और रोगियों की सेवा पूरे मनोयाग से की। क्रीमिया युद्ध के दौरान लालटेन लेकर घायल सैनिकों की प्राणप्रण से सेवा करने के कारण ही वह ‘लेडी बिथ द लैम्प’ (दीपक वाली महिला) के रूप में प्रसिद्ध हो गयी। 
    1856 में वह युद्ध के बाद इंग्लैण्ड लौटीं। तब तक उनका नाम इंग्लैण्ड काफी फैल चुका था। अखबारों में उनकी कहानियां छपीं। लोग उनको नायिका समझने लगे। महारानी विक्टोरिया ने खुद पत्र लिखकर उनका शुक्रिया अदा किया। सितंबर 1856 में इंग्लैण्ड की महारानी विक्टोरिया से उनकी भेंट हुई। उन्होंने सैन्य चिकित्सा प्रणाली में सुधार पर चर्चा की। इसके बाद बड़े पैमाने पर सुधार हुआ। सेना ने डाक्टरों को प्रशिक्षण देना शुरू किया। अस्पताल साफ हो गए और सैनिकों को बेहतर कपड़ा, खाना और देखभाल की सुविधा मुहैया कराई गई। महारानी विक्टोरिया ने फ्लोरेंस के कहने पर जांच आयोग बनाया। 
    1857 में जब रायल सैनिटरी कमीशन की रिपोर्ट तैयार हुई, तो फ्लोरेंस को अंदाजा था कि सिर्फ आंकड़ों की मदद से उसकी बात लोग नहीं समझ पाएंगे। तब फ्लोरेंस ने ‘डायग्राम’ के जरिए लोगों को समझाया कि जब सैनिटरी कमीशन यानी साफ-सफाई आयोग ने काम करना शुरू किया, तो सैनिकों की मौत का आंकड़ा तेजी से गिरा। यह पैमाना इतना कामयाब हुआ कि बहुत जल्द तमाम अखबारों ने इसे छापा और दूर-दूर तक फ्लोरेंस का मानवीय संदेश को पहुंचाया। फ्लोरेंस की कोशिशों से ब्रिटिश फौज में मेडिकल, सैनिटरी साइंस यानी साफ-सफाई के विज्ञान और सांख्यिकी के विभाग बनाए गए। अपनी लोकप्रियता का बहुत चतुराई से फायदा उठाकर फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने विश्व के विभिन्न देशों की सरकारों को लोगों की बेहतरी के लिए कदम उठाने पर मजबूर किया। हेल्थ केयर सिस्टम में आज साफ-सफाई पर जो इतना जोर दिया जाता है, वो ‘लेडी आफ द लैम्प’ की कोशिशों से ही मुमकिन हुआ है। 
    फ्लोरेंस की प्रेरणा से लंदन के सेंट थामस हास्पिटल में 1860 में नाइटिंगेल ट्रेनिंग स्कूल फार नर्सेज खोला गया। न सिर्फ वहां नर्सों को शानदार प्रशिक्षण दिया जाता है बल्कि अपने घर से बाहर काम करने की इच्छुक महिलाओं के लिए नर्सिंग को सम्मानजनक करियर भी बनाया। फ्लोरेंस नाइटिंगेल गणित की जीनियस थी। फ्लोरेंस की वजह से ही ब्रिटेन में नर्सिंग के पेशे और अस्पतालों का रंग रूप बदल गया था। बचपन से ही फ्लोरेंस की दिलचस्पी तमाम जानकारियां जुटाने में थी। इन जानकारियों को याद रखने की उसमें विलक्षण प्रतिभा थी। वो पहाड़े और लिस्ट को जुबानी याद करने की उस्ताद थी। 
    उस समय विश्व के 54 देशों में इंग्लैण्ड का शासन था। फ्लोरेंस ने इन देशों की चिकित्सा, भूखमरी तथा महिलाओं की स्थिति में सुधार आदि की समस्याओं को सुधारने के लिए ब्रिटिश सरकार को विवश किया। विश्व स्तर पर नर्सिंग में उनके अद्वितीय कार्य के लिए उन्हें 1869 में ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया ने ‘रायल रेड क्रास’ से सम्मानित किया। यह सम्मान पाने वाली फ्लोरेंस नाइटिंगेल पहली महिला थी। फ्लोरेंस नाइटिंगेल एक मजबूत इरादों वाली महिला थी। अपनी सेवा भावना की वजह से वो दुनिया की तमाम औरतों के लिए मिसाल बन गई। लोगों तक अपनी बात पहुंचाने और उन्हें मनाने का फ्लोरेंस का तरीका एकदम अलग था। इसकी मिसाल फ्लोरेंस द्वारा बनाये जाने वाले डायग्राम थे। गणित और सांख्यिकी का उसका ज्ञान सैन्य अस्पतालों और आम लोगों की सेहत की देख-भाल करने वाले सिस्टम को सुधारने में बहुत कारगर साबित हुआ। 
    नाइटिंगेल ने विश्व के विभिन्न देशों में हेल्थकेयर को काफी हद तक विकसित किया। नाइटिंगेल ने भारत में भी बेहतर भूख राहत की वकालत की और जहाँ महिलाआंे पर अत्याचार होते थे वहाँ महिलाआंे के हक में लड़ी और देश में महिला कर्मचारियों की संख्या को बढ़ाने में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भारत भी फ्लोरेंस नाइटिंगेल की मानवीय सेवा का कर्जदार है।
    नाइटिंगेल एक विलक्षण और बहुमुखी लेखिका थी। अपने जीवनकाल में उनके द्वारा प्रकाशित किए गये ज्यादातर लेखांे में चिकित्सा ज्ञान का समावेश होता था। इसी बीच उन्होंने नोट्स आॅन नर्सिग पुस्तक लिखी। जीवन का बाकी समय उन्होंने नर्सिग के कार्य को बढ़ाने व इसे आधुनिक रूप देने में बिताया। युद्ध में घायलों की सेवा सुश्रूषा के दौरान मिले गंभीर संक्रमण ने उन्हें जकड़ लिया था। लेकिन, बीमारी के दौरान भी दुनिया की सिस्टर नाइटिंगेल तमाम आंकड़ों की मदद से ब्रिटेन की स्वास्थ्य सेवा में सुधार की जंग लड़ती रही। 90 वर्ष की आयु में 13 अगस्त, 1910 को उनका इंग्लैण्ड में देहान्त हो गया। इंग्लैण्ड के सेंट मार्गरेटस गिरजाघर के प्रांगण में फ्लोरेंस नाइटेंगेल के दिवंगत शरीर को दफनाया गया।  
    इंटरनेशनल काउंसिल आॅफ नर्सेस 130 से अधिक देशों के नर्स संघों का एक महासंघ है। इसकी स्थापना 1899 में हुई थी और यह स्वास्थ्य देखभाल प्रोफेशनल के लिए पहला अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्जरलैंड में है। संगठन का लक्ष्य दुनिया भर के नर्सों के संगठनों को एक साथ लाना है, नर्सों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति और दुनिया भर में नर्सिंग के पवित्र प्रोफेशन को आगे बढ़ाने और वैश्विक और घरेलू स्वास्थ्य नीति तथा सेवा को अधिक से अधिक गुणात्मक बनाने के लिए प्रयास करना है। 
    अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस के अवसर पर प्रतिवर्ष भारत के महामहिम राष्ट्रपति स्वास्थ्य क्षेत्र में उत्कृष्ट सेवाओं के लिए देश भर से चयनित नर्सों को ‘राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार’ से सम्मानित करते हैं। विगत वर्ष अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस पर, राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने कहा कि एक नर्स जो एक दूरदराज के गांव में मरीजों की मदद कर रही है वह सच्चे मायने में एक राष्ट्र निर्माता है। हमारे देश को स्वस्थ रखने में नर्सिंग समुदाय की महत्वपूर्ण भूमिका है। नर्सिंग समुदाय ईश्वर स्तुति और प्रतिबद्धता के साथ लोगों की सेवा करता है और पूरा देश इसके लिए नर्सिंग समुदाय का आभारी है। राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार के तहत देश भर से नर्सिंग कर्मियों को भक्ति, ईमानदारी, समर्पण और करूणा के साथ प्रदान की गई निःस्वार्थ सेवा हेतु चयनित सर्वश्रेष्ठ नर्सों में से प्रत्येक विजेता को पचास हजार रूपये नकद राशि, प्रशस्ति पत्र और एक पदक प्रदान किया जाता है। भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस समारोह का आयोजन राष्ट्रपति भवन में प्रतिवर्ष किया जाता है। 
    नर्सिंग क्षेत्र से जुड़ने वाली नई सिस्टर सबसे पहले मरीजों की सेवा से जुड़ी ‘द नाइटिंगेल प्लेज’ लेती है, जो फ्लोरेन्स के नाम पर है। फ्लोरेंस कहती है कि ‘‘मेरी सफलता का राज यही है कि मैंने कभी किसी बहाने का सहारा नहीं लिया।’’ हमारा विश्व के सभी देशों की सरकारों तथा स्वयं सेवी संस्थाओं को सुझाव है कि नई महामारियों, संक्रमण और प्राकृतिक आपदाओं जैसे बढ़ते खतरों से उत्पन्न चुनौती से निबटने के लिए देश सहित सारे विश्व की स्वास्थ्य सेवाओं को और बेहतर बनाने के वास्ते नर्सिंग शिक्षा और प्रशिक्षण में नवाचार तथा उन्नत प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल पर और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। ग्लोबल सिस्टर फ्लोरेंस का विशाल हृदय सारे विश्व के पीड़ितों के लिए धड़कता था। फ्लोरेंस का करूणा तथा सेवा से भरा जज्बा हमें वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था (विश्व संसद) का शीघ्र गठन करने के प्रेरित करता है। ताकि युद्धरहित तथा सम्पूर्ण रूप से स्वस्थ विश्व का निर्माण किया जा सके। 
पता- बी-901, आशीर्वाद, उद्यान-2, एल्डिको, रायबरेली रोड, लखनऊ-226025 मो0 9839423719

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