अंतर्जातीय विवाह ही बहुजनों को संगठित करने का एकमात्र रास्ता

 

प्रयागराज। ब्राह्मणों में कोई जाति नहीं होती बल्कि केवल गोत्र होते है। जिनमें आपस में शादी-विवाह होते हैं। आपस में रिश्तेदारी होने के कारण सभी में आपसी खूनी रिश्ता कायम रहता है। एक परिवार को तकलीफ होने पर मदद के लिए दूसरा परिवार आगे आ जाता है। ठीक इसी प्रकार से राजपूतों में भी कोई जाति नहीं होती केवल गोत्र होते हैं। इसी कारण इनमें भी आपस में शादी-विवाह होते हैं। रोटी-बेटी का रिश्ता होता है। एक दूसरे परिवारों में रिश्तेदारी होने के कारण सभी एक दूसरे के लिए मददगार होते हैं और सभी संगठित रहते हैं। वैश्य में भी यही समान स्थिति है लेकिन बहुजन समाज तीन टुकड़ो में बटा हुआ है। शूद्र (ओबीसी ,एससी और एसटी) 6743 जातियों में बटा होने के कारण आपस में कोई रोटी-बेटी का रिश्ता नहीं करते। आपसी फूट के कारण एक दूसरे के प्रति कोई संवेदना नहीं, कोई प्यार नहीं, आपस में कोई एक दूसरे का मददगार नहीं होता है उक्त बातें पूर्वांचल दलित अधिकार मंच (पदम) में संस्थापक उच्च न्यायालय के अधिवक्ता आईपी रामबृज ने यमुनापार की तहसील करछना की ग्रामसभा डीहा में सभा को सम्बोधित करते हुये कही। उन्होंने बताया कि "अंतर्जातीय विवाह बहुजनों को संगठित करने का एकमात्र रास्ता" है।
        आईपी रामबृज ने आगे बताया कि एससी, एसटी वर्ग भी 1108 जातियों उप जातियों में बटा हुआ है। जिनमें आपस में रोटी-बेटी का रिश्ता ना होने के कारण एक दूसरे के प्रति कोई संवेदना नहीं है। रिश्तेदारी ना होने के कारण आपस में एक दूसरे परिवार के प्रति प्यार नहीं है और प्यार न होने के कारण आपस में संगठित भी नहीं रहते हैं।

       आईपी रामबृज ने आगे बताया कि जाति व्यवस्था समाज की एक विशिष्ट चारित्रिक लक्षण है। यह व्यवस्था हिन्दू धर्म की अविच्छिन्न हिस्सा है। जिस धर्म में गाय, सांप व बन्दर की पूजा की जाती है उसी धर्म में इंसानो के एक हिस्से को सदियों तक इंसान का दर्जा नही दिया गया। जो शुद्र थे अन्त्यज या अछूत थे। जिनकी छाया मात्र से तथाकथित उच्च वर्णो के लोग अपवित्र हो जाते थे। हालांकि वे गोमूत्र छिड़ककर फिर पवित्र हो जाते थे। सारा उत्पादन कर्म करने के बावजूद वे उत्पादन के फल से वंचित रहे। वर्ण व्यवस्था का विधान उत्पादन पर नहीं केवल उपभोग पर लागू होता था।वर्ण व्यवस्था के पैरोकारों के लिये शुद्र का स्पार तो घृणित था लेकिन शुद्र द्वारा उत्पादित श्रम के फल के उपभोग से कोई वर्जना नही थी।

      आईपी रामबृज  का कहना है कि हमे हत्या मंजूर है, बेटियों के साथ बलात्कार मंजूर है लेकिन बहुजनों में आपस में अंतर्जातीय विवाह मंजूर नही। हम बौद्ध धम्म अपना लेंगे, विपश्यी बन जायेंगे, सामाजिक संगठनों के पदाधिकारी बनकर बड़े बड़े भाषण देंगे, बड़े बड़े दानदाता भी बन जायेंगे। अंतर्जातीय विवाह करके आरक्षणी दौलत और पुरुखों की रियासत विरासत सब सवर्णो को सौप देंगे लेकिन अंतर्जातीय विवाह मंजूर नही है। हमारी मुख्य समस्या अमीरी गरीबी नही जातीय भेदभाव है और सभी सांस्कृतिक, शैक्षिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और धार्मिक समस्याओं का सिर्फ एक ही इलाज है बहुजन अंतर्जातीय विवाह।

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