पेस्टिसाइड के चक्रव्यूह में बुरी तरह से फंसा राजस्थान का किसान......

 

कृषि में पेस्टीसाइड के प्रचलन से प्रदेश में बढ़े कैंसर के रोगी.....

जैवविविध जैविक खेती की जरूरत..... कैलाश सामोता 

जयपुर 16 सितंबर, 2023 भारत देश कृषि प्रधान देश है । भारतवर्ष में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है और कृषकों की मुख्य आय का साधन कृषि व पशुपालन है । देश में हरित क्रांति ने खाद्यान्न उत्पादन को जरूर बढ़ाया है, लेकिन देश का किसान को पेस्टिसाइड के चक्रव्यूह में इस कदर फंसाया जा चुका है कि वह बिना पेस्टिसाइड के फसल नहीं उपजा पा रहा है । खेती में काम आने वाले जहरीले रसायनों ने व संकर बीजों के प्रचलन ने, ना केवल उपजाऊ मृदा को बंजर बना दिया है बल्कि फसल उत्पादन/पैदावार, खाद्यान्न की गुणवत्ता, कृषक परिवार के स्वास्थ्य और फसल चक्र को बर्बाद करने का भी काम किया है । देश में हरित क्रांति का दावा भले ही किया जा रहा हो, लेकिन देश की 140 करोड़ की आबादी को खाद्यान्न आपूर्ति के लिए, आज पहले की तुलना में ज्यादा खाद्यान्न इंपोर्ट/आयात करना पड़ रहा है । देश का किसान आधुनिक कृषि के चक्कर में पड़कर, कर्जदार होकर बर्बाद हो रहा है और प्रतिवर्ष ढाई लाख किसान आत्महत्या करने को मजबूर है । देश में किसानों की आत्महत्या का मुख्य कारण महंगे बीज, कृषि में प्रयुक्त होने वाले मंहगे पेस्टिसाइड, फसल खराबा तथा कृषि रसायनों के प्रभाव से होने वाली बीमारियों के ईलाज से होने वाला कर्ज है ।

रासायनिक कीटनाशकों का नियमन जरूरी......

                     पुरातन काल में मानव स्वास्थ्य के अनुकूल और प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप खेती की जाती रही है, जिससे जैविक और अजैविक घटकों के बीच पारिस्थितिक तंत्र में निरंतरता व साम्यावस्था बनी रहती थी । कृषि के साथ गोपालन अत्यधिक लाभदायक साबित होता था । लेकिन, धीरे-धीरे गोपालन कम होता गया और कृषि में तरह-तरह के रासायनिक खाद्य व कीटनाशकों का प्रयोग होने लगा । जिसके परिणामस्वरुप प्रकृति के जैविक और अजैविक घटकों में संतुलन बिगड़ गया और पर्यावरण प्रदूषण, मृदा बंजर और मानव स्वास्थ्य बुरी तरह से प्रभावित होने लगा । अंधाधुंध कीटनाशकों के इस्तेमाल से पारिस्थितिक असंतुलन और खाद्य श्रृंखलाओं पर दुष्प्रभाव पड़ने लगा । आज भी हमारी पारंपरिक खेती, अपने बीज और देसी नुस्खे फसल को सुरक्षित और जहरीला होने से बचाने में सक्षम है । इसलिए इंसान की सेहत, अन्न की पौष्टिकता, जमीन की उर्वरता एवं पानी के अमरत्व को बनाए रखने के लिए, रासायनिक कीटनाशकों का नियमन और नियंत्रण अनिवार्य हो गया है । मनुष्य और पर्यावरण की जोखिम को कम करने के लिए, हमें कीटनाशकों पर नियमन के लिए पेस्टिसाइड मैनेजमेंट बिल लाकर, उसे अमल में लाना होगा ।

विविधता से ही प्रकृति का चक्र चलता.....

                प्रकृति एवं प्राकृतिक जल स्रोतों के संरक्षण के लिए संघर्षरत पर्यावरणविद शिक्षक कैलाश सामोता रानीपुरा, शाहपुरा, जयपुर का मानना है कि विविधता से ही प्रकृति चलती है । कृषि वैज्ञानिकों का द्वारा सुझाई जा रही कृषि की रासायनिक दवाइयां और संकर बीजों के प्रचलन से फसल पैदावार बढ़ने का दावा बिल्कुल झूठा है । रसायनों ने प्रकृति का संतुलन जरुर बिगड़ा है, फसल में अनेकों बार किए जाने वाले पेस्टिसाइड्स के स्प्रे से प्रकृति और मिट्टी में उपस्थित लाभदायक कीटों की सैकड़ो प्रजातियां लुप्त हो गई है । ड्रग्स कंपनियों द्वारा किसानों को गुमराह करके दवा के स्थान पर, जहर स्प्रे करने की सलाह दी जा रही है, जिससे फसल चक्र खराब होता जा रहा है । आज पेस्टिसाइड के प्रचलन ने सभी दलहनो जैसे मूंग, मोठ, ज्वार, चवला और तिलहनों जैसे मूंगफली, तिल, अलसी, आदि की फसलों को लगभग खेतों से गायब कर दिया है और फसलों में मोनोकल्चर खेती प्रचलन में आई है, जिसमें एक ही प्रकार के खाधान्न जैसे गेहूं, चावल की पैदावार जरूर बड़ी है, जो भी पूरी तरह से जहरीली खेती है।इसलिए आज जरूरत है कि जैव विविधता युक्त जैविक खेती की जावे, जिसमें विभिन्न फसलों को एक साथ जैसे गेहूं के साथ चना, चवला, जौ, मूंग, मोठ, आदि की मिश्रित खेती की जानी चाहिए ।ताकि प्रकृति में जो तत्व मौजूद है, उनका आपस में निशुल्क लेनदेन हो सके और रसायनों पर निर्भरता से भी छुटकारा मिल सके ।

प्रदेश का जयपुर ग्रामीण क्षेत्र बना "जहरीली खेती का हब"......

               राजस्थान के राजधानी क्षेत्र विशेष कर जयपुर ग्रामीण के चोमू, जोबनेर, जमवारामगढ़,फुलेरा, शाहपुरा, कोटपूतली, सांभर, चाकसू, बगरू, झोटवाडा, गोविंदगढ़ क्षेत्र के किसान खेती के ड्रग्स माफिया के चुंगल में फंसकर उनके झांसे में आकर, विशेष कर सब्जियों तथा फसलों में जहरीले रसायन का स्प्रे कर रहे हैं । एक फसल में ही अनेकों बार "जहर का स्प्रे" करने को कंपनियां प्रेरित करती हैं और फसल उत्पादन में बढ़ोतरी का झूठा दावा करती है । इस प्रकार इस जहरीले रसायनों के प्रचलन से ना केवल उपजाऊ मृदा वाली भूमि बंजर हो चुकी है बल्कि खेतों से दलहन और तिलहन की फैसले गायब हो चुकी हैं । कृषि में जहरीले रसायनों के स्प्रे से किसान कैंसर जैसी बीमारियों से ग्रसित हो रहा है । वही फसल उत्पादन भी धीरे-धीरे कम होता जा रहा है और ना ही सब्जियों के भाव मिल पा रहे हैं । जयपुर ग्रामीण क्षेत्र के अधिकांश कृषि जहरीली हो चुकी है । यही कारण है कि क्षेत्र में सर्वाधिक संख्या में रोगी हैं और रोगियों के इलाज के लिए यहां पर हजारों की तादात में झोलाछाप निजी चिकित्सा केंद्र खुल गए हैं । खेती में प्रयुक्त दवाइयो के उत्पादन व बेचान से जुडे ड्रग्स माफिया और मानव स्वास्थ्य व पशु स्वास्थ्य से जुड़े हुए, ड्रग्स माफिया की मिली भगत का खेल प्रदेश की राजधानी क्षेत्र के चारों तरफ बेतहसा फैल चुका है । यदि समय रहते कृषि में इन हानिकारक रसायनों के प्रचलन को नहीं रोका गया तो जल्द ही राजस्थान के इस जयपुर ग्रामीण से भी पंजाब की तरह कैंसर की ट्रेनें चलानी पड़ेगी ।

कैलाश सामोता "रानीपुरा"पर्यावरणविद् शिक्षक, शाहपुरा, जयपुरग्रामीण, राजस्थान

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