
मैंने अपनी देहदान करने का फैसला इस लिए लिया, कि में कुछ अंश मात्र भी मानवता के काम आ सकूं तो मेरा सौभाग्य होगा। ये रिश्ते नाते ये बस जब तक देह है तब तक ही तो साथ है,मगर देह त्यग्नेरके बाद सारे बंधन से मुक्त हो जाते हैं। फिर किस बत्रके बंधन मैं बंद कर रहूं। पिछले कुछ महीनों से मेरा आध्यात्मिक की और मेरा झुकाव होने लगा और फिर मैंने महसूस किया कि में जो हूं वो तो हूं ही नहीं इस लिए मुझे खुद को पहचानना होगा और अब में खुद को और अपनी आत्मशक्ति को पहचाने लगा हूं।
जब भी जैसे भी हालात में मेरी मृत्यु हो मेरा ये मिट्टी का शरीर मेरी भारत की भूमि के काम आए, मेरे शरीर पर शोध किया जाए। हम सब बहुत संघर्ष करते है, मगर किसके लिए ? सिर्फ और सिर्फ अपने लिए और कहते है की हम आने वाली पीढियों के लिए ये सब कर रहे हैं। मगर हंसी जब आती है कि हम सब झूठ बोल रहे है अपने आप से।
हम सबने जो भी हासिल किया है अपनी अपनी जिंदगी में बस क्षणभर उसकी खुशी मिलती है, हम सबको पता है मृत्यु ही सत्य है, और हम सब उसके निकट है, फिर किस बात का भय। जो भी समय शेष बचा है, उसको परोपकार में, मानवता के कल्याण में क्यों न लगा दें। हमने कभी यह सोचा है, कि हमको इतना कुछ दिया है प्रकृति ने हमें।
क्या हमने कभी वापस किया कुछ । हम मनुष्य सिर्फ लेना ही जानते हैं कभी देना नहीं सीखा । जो हमारा है ही नहीं उसको देने में हर्ज ही क्या है। सब जानते है, ये हमारा शरीर पांच तत्वों से बना है फिर उन्हीं में मिल जाएगा। मगर फिर भी हम सब के मस्तिष्क में ये अंधकार कैसा ??
बस थोड़ी सी गहराई से अध्ययन करने वाली बात है कि हमको जीवन में कुछ ऐसा करना चाहिए जो मानवता के काम आए, और हम हमेशा लोगों के बीच में जीवित रहे। मरता कोई नहीं है। ????????????????
धर्मेन्द्र बघेल
फिल्म लेखक और निर्देशक
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