लाखों बौद्ध भिक्षुओं का कत्लेआम करने वाला भारत सबसे क्रूर शासक पुष्यमित्र शुंग : धर्मेन्द्र बघेल

बौद्ध धर्म एक विशुद्ध भारतीय विचारधारा है। जिसने सम्पूर्ण विश्व को सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाया। उनके विचारों से प्रेरित होकर कितने देश शक्तिमान बन गए।मगर  यहाँ एक प्रश्न यह भी उठता है, कि क्या भगवान बुद्ध के विचारों को मिटाने का कुप्रयास सत्ता का दुरुपयोग अपराध नहीं था तो क्या था ? जिसके कारण भारत वर्ष की नीव ही हिल गई। जिसे दोबारा से स्थपित होने में हजारों वर्षों की लंबी यात्रा करनी पड़ी। मेरी नज़रों में अगर भारत के इतिहास में जो काला अध्याय जुड़ा, उसका पुष्यमित्र शुंग ही उसका जिम्मेदार है।

  
एक ऐसा क्रूर और घटिया शाशक जिसने अपने छल और कपट से  मौर्य वंश का तो पतन तो किया ही था अपितु सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत को भी हजारों वर्ष पीछे धकेल दिया। इस लिए किसी भी प्राचीन राजा या शासक को महान अथवा अयोग्य घोषित करने से पूर्व उसके द्वारा किये गये उसके कार्यों का औचित्य तथा उन कार्यों के दुरगामी परिणामों पर विचार किया जाना बहुत अति आवश्यक  है।

पुष्यमित्र शुंग कौन था– उपलब्ध इतिहास में इस बारे में अधिक जानकारी नहीं है। सिर्फ इतना ज्ञात है कि उसके पूर्वज शायद उज्जैन के रहनेवाले थे और मौर्यों की सेवा में थे। पुष्यमित्र शुंग के ब्रह्मण होने की पुष्टि भी आधिकारिक नहीं है। किसी ने उसे बैम्बिक कुल का ब्राह्मण,तो किसी ने कश्यप  गोत्रीय ब्राह्मण,शुंग “पुरोहित या आचार्य” तो किसी ने अनार्य किसी ने औद्भिज भी बताया है। यहाँ तक कि कुछ विद्वानों का मत है कि पुष्यमित्र शायद पारसी समुदाय से भी हो सकता है। इस तरह सर्वसम्मति से न तो उसके ब्राह्मण होने की पुष्टि होती है और न हीं उसके भारतीय होने की का ठोस प्रमाण है। 

भारत के  इतिहास में मौर्य काल भारत का सबसे स्वर्णिम काल माना जाता है। महान ब्राह्मण विद्वान कूटनितिज्ञ अर्थशास्त्री आचार्य विष्णुगुप्त, चाणक्य तथा सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य की शासन प्रणाली, जिसमें आज भी बहुत कुछ सीखने तथा लागू करने की जरूरत है। मौर्य सम्राट अशोक की कृति एवं उनकी कीर्ति इस बात के प्रमाण हैं। लेकिन बाद के मौर्यवंशी शासक उतने प्रबल नहीं रहे तथा कोई विशेष उल्लेखनीय कार्य नहीं कर पाये। अंततः अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ के एक घाती सेनापति पुष्यमित्र ने उनकी छल से हत्या करके स्वयं को राजा घोषित कर दिया तथा शुंग राजवंश की स्थापना की।

भारत के इतिहास में पुष्यमित्र शुंग को भी महान राजा कहा गया है। विशेषकर संभवतः इसलिए कि उन्होंने तत्कालीन बौद्ध धर्म के चौरासी हजार स्तूपों को उजाड़कर ब्राह्मण धर्म को पुनर्जिवित किया। मगर राजा पुष्यमित्र शुंग का यह कार्य कितना उचित था ? आधुनिक भारत के परिप्रेक्ष्य में हितकर था या अहितकर? प्रशंसनीय था या निंदनीय या फिर दंडनीय? इस बात की समीक्षा अभी शेष है।

मौर्य सेनापति- अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ 187 ईसा पूर्व सिंहासन पर बैठे थे। और मात्र दो वर्ष बाद ईसा पूर्व 185 में उसकी हत्या कर दी गई। इससे दो बातों का अनुमान लगता है। यदि पुष्यमित्र सेनापति थे तो सम्राट शतधन्वन के समय से ही रहे होंगे। इस नाते नये सम्राट को सहयोग करना उनकी ज़िम्मेदारी थी। या संभव है वे बृहद्रथ के बहुत विश्वासपात्र एवं नजदीकी रहें हो, जिस कारण बृहद्रथ ने उन्हे अपना सेनापति बनाया हो। यदि ऐसा था तो पुष्यमित्र शुंग ने सेना का शौर्य प्रदर्शन दिखाने के बहाने अपने राजा की हत्या करके राज्य, अपने पद और अपने सम्राट के साथ इतना बड़ा विश्वासघात किया। पुष्यमित्र के इस कार्य को किसी भी दृष्टिकोण बिल्कुल उचित  नहीं ठहराया जा सकता है। यदि बृहद्रथ अयोग्य था तो शुंग को यह नहीं भूलना चाहिए था कि वह सेनापति था और सेनापति का कार्य राज्य एवं राजा की रक्षा करना होता है। मगर उसके अंदर मौर्या वंश के प्रति पल रहे जहर ने उसे ऐसा करने पर मजबूर किया होगा। 

राजा यदि कोई राज्य विरुद्ध कार्य कर रहा हो तो राज्यहित में उसे बहुत से बहुत बंदी बनाकर पदच्युत किया जाना चाहिए था। मगर शुंग ने ऐेसा नहीं किया। स्वयं राजा बनने के लिए शुंग ने क्रूर एवं पापी कंस को भी पीछे छोड़ते हुए एक षड्यंत्र में अपने सम्राट की हत्या कर  स्वयं गद्दी पर बैठ गया। भारतीय इतिहास के एक महान राजा के महान कार्य देश भर में फैले चौरासी हजार बौद्ध ज्ञान केन्द्रों को जड़ से मिटवा दिया। इससे यह सिद्ध होता है कि उसके मन में ईर्ष्या, द्वेष और षड्यंत्र कोई नया नहीं था, बल्कि वह मौर्य वंश की छाया में पलने वाला अवसर की ताक में बैठा मौर्य वंश एवं उनकी कीर्ति का घाती था। वह जिसकी खाता था उसी से ईर्ष्या करता था तथा उसी का शत्रु था।

इस घृणित राजद्रोह के बाद भी उसने यदि राज्य एवं नागरिकों के हित में कोई उल्लेखनीय कार्य किया होता तो उसके इस तर्क को माना जा सकता था कि उसने राज्य के हित में ऐसा किया। राजा बनने के तुरंत बाद बाद उसने मगध सेना की शक्ति का लाभ उठाते हुए अश्वमेघ यज्ञ किया। जिसमें निश्चित रूप से ही उसका निजी स्वार्थ एवं व्यक्तिगत यश की लिप्सा थी।

अपने शासनकाल के अंत में उसने दो बौद्ध स्तूपों के अवशेषों का पुनर्निर्माण करवाया। यह इस बात का प्रमाण है कि अंत में उसे अपने किये गये दुष्कृत्य पर पश्चाताप हुआ होगा। और बाद मैं उसे इस बात का घोर पछतावा भी हुआ होगा कि उसने सबसे क्रूर कार्य को अंजाम देकर भारत के इतिहास मैं काला अध्याय जोड़ दिया।

“शुंग” शब्द कहीं से भी तत्सम तद्भव या देशज प्रतीत नहीं होता। इस शब्द का सही विश्लेषण भाषा वैज्ञानिक हीं बता पायेंगे। पुष्यमित्र शुंग का चरित्र भारत के ब्राह्मणों के चरित्र से मेल नहीं खाता । वह एक शातिर एवं चालाक , मक्कार और अवसरवादी घाती  व्यक्ति था। जिसने उस समय के असंतुष्टों को अपनी तरफ मिलाने तथा उनके सहयोग से एक सफल द्रोह को कार्यरूप दिया। और उसमे  अंततः सफ़ल भी हुआ।

जितनी जलन और  द्वेष उसे मौर्य वंश से था उससे कहीं ज्यादा द्वेष और चिढ़ उसे बौद्ध धर्म एवं विचारधारा से था। उसने अनगिनत बौद्ध भिक्षुओं की हत्या करवा दी। तथा एक भिक्षु के सर के बदले उस समय के 100 स्वर्ण मुद्राएँ देने का घोषणा कर दिया। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि ऐसी लालचपूर्ण घोषणा के बाद कितने बौद्ध साधुओं की निर्मम हत्या हुई होगी।

उसे अच्छी तरह ज्ञात रहा होगा कि बौद्ध धर्म स्थापित होने के बाद स्वभाविक रूप से पुरोहित ब्राह्मणों का एक बड़ा समुदाय जिनकी दान दक्षिणा से होनेवाली आमदनी समाप्त हो गई थी, मौर्यों एवं बौद्धों से खिन्न एवं असंतुष्ट होकर बौद्धों के शत्रु हो गये थे। इसलिए पुरोहित ब्राहमणों की सहानुभुति जीतने। अपनी छवि बनाने में उनका सहयोग प्राप्त करने तथा अपने दुष्कृत्य छुपाने के लिए उसने स्वयं को ब्राह्मण घोषित कर लिया होगा ।


ऐसा अनुमान भी लगाया जा सकता है कि उसका असली शत्रु सम्राट बृहद्रथ नहीं बल्कि बौद्ध धर्म था। उसका असली उद्देश्य नागरिकों का हित नहीं बल्कि लाखों की संख्या में बौद्धों का कत्लेआम रहा। जो सम्राट बृहद्रथ के रहते संभव नहीं था। अतः अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए शुंग ने सम्राट की हत्या करके एक तीर में दो शिकार किये। और उन लाखों निर्दोष साधुओं की हत्या कराई जो भारत का स्वर्णिम इतिहास के उसके साक्षी थे। उन्हें बेरहमी से कतलेआम किया गया।

बौद्ध साधुओं पर यह आरोप लगाया गया था कि वे यवनों की सहायता कर रहे थे। हो सकता है इस बात में कुछ सच्चाई रही हो मगर यह प्रमाणित नहीं लगती , क्योंकि सम्राट स्वयं बौद्ध था और ऐसे किसी भी षड्यंत्र की जानकारी की भनक मिलने पर वे मठों के विरुद्ध कड़ी कारवाई का आदेश दे सकता था, मगर वसुमित्र की राजधानी में लगा गरुड़ ध्वज तो इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि शुंगवंशी वसुमित्र ने यवनों से मित्रता की थी।

पुष्यमित्र शुंग को यह अनुमान नहीं रहा होगा कि जिस बौद्ध धर्म का नामों निशान वह मिटाना चाहता है। एक दिन वही बौद्ध विचारधारा दुनिया में भारत की पहचान बनेगा। वर्तमान भारत की पीढ़ी बुद्ध एवं बौद्ध विचारधारा पर गर्व करती है। दुनिया को अपनी शांति का संदेश देते हुए आज भारत सरकार का शीर्ष नेतृत्व बड़े गर्व से यह घोषणा करती है कि हमें युद्ध नहीं बुद्ध चाहिए।

पुष्यमित्र शुंग ने बौद्धों को तबाह किया साथ हीं उसने सनातन वैदिक धर्म का स्वरूप भी उस समय के असंतुष्ट ब्राह्मणों के हिसाब से बदल दिया। जैसा कि उसके बारे में माना जाता है कि उसने पुरोहित ब्राह्मण धर्म को पुनर्जीवित किया। मगर जिस ब्राह्मण धर्म को उसने पुनर्जीवित किया वह वैदिक धर्म से बिल्कुल भिन्न था। जिसे स्थापित करने के लिए नये-नये कथा साहित्य तथा ब्राह्मण ग्रंथों की रचना हुई जो वेद पर आधारित प्रचारित किये गये, मगर वास्तव में उन ग्रंथों ने वेद के नाम पर दूसरी कथाओं का प्रचार किया। और भारतीय इतिहास को ही बदल कर रख दिया।

पुष्यमित्र शुंग के राजा बनने के बाद न सिर्फ मौर्य वंश समाप्त हो गया बल्कि मगध साम्राज्य का सदैव के अंत हो गया। पाटलिपुत्र नाम मात्र की राजधानी रह गई। सत्ता का केन्द्र विदिशा स्थानांतरित हो गया था।इस तरह से पुष्यमित्र शुंग की महानता विवादित एवं संदेहास्पद है तथा व्यक्तिगत रूप से मैं राजा पुष्यमित्र शुंग की महानता से असहमत हूँ। क्यूं की अगर वो महान होता तो ऐसा क्रूर कार्य कदापि ना करता।

मगर इतने छोटे से लेख में किसी इतिहासिक राजा के चरित्र के बारे में कोई निर्णय दे देना एक जल्दीबाजी में किया हुआ एक अधुरा एवं अनुचित कार्य होगा। और मैं यह मानता हूँ कि इस छोटे से अध्ययन के आधर पर राजा शुंग की कथित महानता को न तो नकारा जा सकता है और न हीं उसे एक घाती चरित्र घोषित किया जा सकता है। 

नोट: लेखक के अपने विचार हैं।

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