
दिल्ली की सीमाओं पर पाँच जगह चल रहे किसान आंदोलन के छह मार्च को 100 दिन पूरे हो जाएंगे. आंदोलन ठंड के मौसम में शुरू हुआ था और अब किसान गर्मियों की तैयारियों में जुटे हैं.
आंदोलन स्थल के ताज़ा हालात देखकर लग रहा है कि अगर सरकार के साथ कोई समझौता नहीं हुआ, तो ये आंदोलन और लंबा खिंच सकता है.
दिल्ली और हरियाणा के बीच सिंघु बॉर्डर पर अब बांस-बल्लियों के तंबुओं की जगह, स्टील के ढांचे और इनपर तंबू बांधे जाने की क़वायद शुरू हो चुकी है. कई टेंटों में एसी और कूलर लगाने का काम भी ज़ोरों से चल रहा है.
सिमरनजीत सिंह, पंजाब के मोगा के रहने वाले हैं और पिछले तीन महीनों से भी ज़्यादा समय से वो सिंघु बॉर्डर पर दूसरे किसानों के साथ मिलकर आंदोलन कर रहे हैं.
बीबीसी को उन्होंने अपनी ट्रॉली दिखाई जिसे एसी लगाने के लिए चारों तरफ़ से प्लाई बोर्ड से घेर दिया गया है.
उनका कहना था कि अब किसानों को नहीं लगता है कि आंदोलन जल्द ख़त्म होगा और सरकार उनकी माँगें मानेगी.
वो कहते हैं, "अब तो ये लंबा खिंचता हुआ नज़र आ रहा है. इसलिए हम उसी तरह की तैयारियां कर रहे हैं. अब जितने दिन भी खिंच जाए, हम तैयार हैं."
सिंघु बॉर्डर अपने आप में एक उप-नगर जैसा लगने लगा है. ट्रॉलियों में लोग 'घर' की तरह रह रहे हैं. टेंट भी घरों की तरह ही बना दिए गए हैं. कहीं बड़ी-बड़ी वाशिंग मशीनें लगी हैं, तो कहीं सड़कों पर जूते चप्पलों की दुकानें.
वहीं एक युवक टी-शर्ट बेच रहा है जिस पर लिखा है 'नो फ़ार्मर, नो फ़ूड'. इसी तरह लिखे गए स्टीकर गाड़ियों पर भी नज़र आते हैं.
छोटी अस्थायी दुकानों पर 'ब्लू टूथ' स्पीकर और पॉवर बैंक बिक रहे हैं. इसके अलाव रोज़मर्रा की ज़रूरत की चीज़ें. लंगर, चाय और शर्बत के टेंट भी जगह-जगह लगे हुए हैं.
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