ईश्वरत्व प्रकटीकरण!

ईश्वरत्व प्रकटीकरण!
(मधुकथा २१०४०४ अग्ररा) -०२:०५

जो कोई  ईश्वरत्व स्वरूप में आते हैं वे आसानी से यह प्रकट नहीं करते! वे कर्म कर समाज को बदलने में व्यस्त रहते हैं। उन्हें बातें या टिप्पणियाँ करने या प्रसिद्धि पाने की कोई इच्छा नहीं होती। 

जो ईश्वर हैं उन्हें किसी से प्रमाण पत्र या सम्मान पाने का कोई भाव नहीं होता। वे तो अपनी सृष्टि के हर प्राण को सहयोग व प्रेरणा देने व उनके राह में आ रही बाधाओं को दूर करने में लगे रहते हैं। 

हर जीव में ईश्वरत्व सुषुप्तावस्था में रहता है और उसे जागृत करना ही हर जीव, जगत व सृष्टा का कर्त्तव्य है। 

बस्तुत: हर व्यक्ति ही अवतार है और उसे अपना ब्राह्मी (ब्रहत ब्रहत) स्वरूप सेवा व साधना कर यथाशीघ्र प्राप्त कर अधिकतम कर्म करते जाना चाहिए! 

ईश्वर और जीव में भेद करना भी द्वैत है। मालिक तो यही कहते हैं कर्मियों से कि तुम सब मालिक हो, मालिक की तरह काम करो। वैसा ही हर सृष्टि निदेशक कहता है और स्वयं को वह कर्मियों का सेवक समझ काम करता है। 

ईश्वरत्व प्राप्त करना हर व्यक्ति व हर ईश्वरत्व प्राप्त प्राण की एषणा है! 

जैसे किसी बड़ी जागतिक संस्था में अनेक निदेशक होते हैं, वैसे ही सृष्टि में एक समय पर अनेक या अनन्त ईश्वरत्व प्राप्त व्यक्ति हो सकते हैं। उनमें से एक प्रमुख निदेशक हो सकते हैं। 

अनेक निदेशक या प्रबंधक या कर्मी होते हुए भी सब एक नीति से चलते हैं। अनेक होते हुए भी समष्टि एक भाव, एक विचार प्रवाह व एक नियंत्रण से चलती है। 

ईश्वरत्व पा कर हर निदेशक शून्य हुए कर्म करता है। वहाँ उनके समर्पित अहं व चित्त पर महत तत्व का पूर्ण प्रभाव रहता है। 

हम किस निदेशक से मिल पाए, कौन हमें भाया या पाया, यह देश काल व पात्र की अवस्थिति पर निर्भर करता है। 

जो भी संस्कार वश, देश काल की अवस्था में हमें मिल गए या हमें  अपनी जागतिक संस्था में रख लिए या अपना लिए, वह ठीक है। हम इस संपर्क या संस्पर्श का लाभ उठाएँ यही उचित है। 

यदि हमें ईश्वर मिल गए यह सौभाग्य की बात है। हमारा मन अच्छा है तो उन्हें हम समझ भी लेंगे। पर हम उन्हें समझे, उससे पहले वे हमें समझे तभी तो हमें उन्होंने बुलाया व साथ रखा। 

यह बड़े सौभाग्य की बात है कि हमें ईश्वर स्वरूप में पृथ्वी पर विचरते गुरु या सृष्टा या युग-दृष्टा मिल जाएँ और वे ईश्वरत्व का संचार हमारे अन्दर करदें! 

हमें योग साधना सिखा या सिखवा कर, कृपा कर शक्ति-पात कर, यदि वे हमारी बुद्धि के भ्रमजाल से हमें बाहर निकाल, बोधि के उदधि में ले जाएँ और हमारे चक्र खुल जाएँ तो जीव और ईश्वर का भेद समाप्त हो जाए! 

पर ऐसा होने पर आप फिर सृष्टि प्रबंधन में लग जाएँगे और आपकी कार्यशैली बहुत सूक्ष्म व गूढ़ हो जाएगी! आप अपने सृष्टि प्रबंधन में व्यस्त हुए न अधिक कह पाएँगे और न हर कोई आपको समझ पाएँगे!  

आप यह चाहेंगे भी नहीं कि हर कोई आपको जान जाए क्यों कि वैसा होने से आप अपना सृष्टि प्रबंधन का कार्य सुचारु रूप से करने में 
असुविधा अनुभव करेंगे। आपको तब सूक्ष्म हुए, बिना अधिक प्रचार किए, कार्य करना पड़ेगा। 

जब आप कर्म व सेवा रत होंगे, ज्ञान बढ़ेगा, पढ़ने लिखने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, सृष्टि के प्रति आकर्षण व श्रद्धा भक्ति बढ़ेगी, योग तंत्र दृढ़ होगा और समर्पण होता जाएगा! 

तब आप सृष्टि संस्था की अपनी संतति या सहयोगियों को हर पल स्नेह मात्र करेंगे और कम से कम बोलते हुए, कर्म लीन रहेंगे! 

तब आप अपने सहयोगियों की प्रतिभाओं, क्षमताओं, अनुभवों, अनुभूतियों व सम्भावनाओं और सद्गुणों को देखेंगे न कि उनके दोषों को! तब आप सबको प्रेरणा देंगे और इशारे से काम लेंगे! 

तब आपको अपने गुणों को बताने का वक्त नहीं होगा, वे जान गए होंगे और स्वयमेव श्रद्धा से नत हो आपका कार्य करेंगे! 

पहले सृष्टि निदेशकों के विषय में बात या विवेचना करने या उनके कार्यों का लेखा जोखा पढ़ने या कौन पहले आया कौन बाद में, यह सब सोचने की आवश्यकता नहीं होगी क्यों कि तब तक आपको हर बात का यथार्थ ज्ञान आत्म-ज्ञान द्वारा हो जाएगा! 

उस अवस्था में आपको अपना वर्चस्व दिखाना, विद्वता का बखान करना, आदि निरर्थक हो जाएगा। तब आप ऊल-जलूल बातें न पढ़ेंगे और न टिप्पणियाँ कर किसी को अपना पाण्डित्य दिंखाने का प्रयास करेंगे! 

आप स्वयं का आत्म-साक्षात्कार कर महत मन हो कर ही सृष्टा को समर्पण कर पाएँगे! स्वयं अपने को बिना जाने, आप ब्रह्म को पहचान लें, यह सम्भव नहीं है! 

हर पथिक उन्हें पाने को बेक़रार है पर वे तो हमारे अन्दर ही बैठे हैं! बाहर आँखें बंद हों तो वे नज़र आएँ! यथार्थ में हम और वे कभी अलग थे ही नहीं! 

ब्रह्म का हर प्राण, हर अणु, हर प्रवाह व हर तरंग ब्रह्म है! ईश्वर का हर अंश ईश्वर है! 

सृष्टि में यदि जीव हैं तो सृष्टा है! बिना ईश्वर के सृष्टि अस्तित्व में ही नहीं रह सकती! 

बाहर चमत्कार मत खोजो, अन्दर झाँको, तुम्हारा सृष्टा तुम्हें मिल जाएगा! तुम्हें खोज कर आश्चर्य होगा कि जिसे तुम जन्म जन्मांतर से खोजते रहे वे तुम्हारे अन्दर थे, तुम्हीं थे! 

✍???? गोपाल बघेल ‘मधु’ 

४ अप्रेल २०२१ - ०३:४५ 
टोरोंटो, ओन्टारियो, कनाडा 

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