राज कुमार पाल - भारतीय हॉकी के नये जादूगर :-
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हिन्दुस्तान कभी "हॉकी का "मक्का" कहा जाता था। किताबी तालीम के लिहाज़ से हाकी हिन्दुस्तान का राष्ट्रीय खेल है। अक्सर सुना जाता है कि कभी खिलाड़ियों को पैसे की किल्लत है तो कभी फीस की और तो और जूतों से लेकर ड्रेस तक। फिर भी हाकी को "राष्ट्रीय खेल" का दर्जा बदस्तूर जारी है। हाकी की अगर बात हो तो फिर "भारत रत्न मेजर ध्यान चंद" को तो भूल ही नहीं सकते। "मीन कैम्फ" जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर की आटोबायोग्राफी है जिसमे हाकी के जादूगर "ध्यान चंद" का बखूबी जिकर है कि किस तरह "मेजर साहब" के जादुई हाकी से हिटलर प्रभावित होकर जर्मनी की नागरिकता और सेना में कर्नल (Colonel) जैसे उच्च पद की लालच देना और मेजर साहब द्वारा ठुकराना। साल 1930 से 1980 तक हिन्दुस्तान में हाकी का स्वर्ग युग था। हिन्दुस्तान ने हाकी का आखिरी ओलम्पिक "मास्को" में जीता था साल 1980 में। तबसे हाकी अपना पुराना रुतबा हासिल करने को फड़फडा़ रही है।
बात ओलम्पिक की चली है तो फिर हाकी की एक नई सनसनी हिन्दुस्तान में दस्तक दे चुकी। "गड़रिया कौम" के राजकुमार पाल नीली जर्सी पहन चुके हैं। मूलतः उत्तर प्रदेश के गाजीपुर निवासी को हाकी खिलाड़ी प्यार से "गाजीपुर का राजकुमार" (Prince of Gazipur) कहते हैं। नीली जर्सी प्राप्त मैदान में जोरदार हाकी खेलने वाले राजकुमार पाल मिडफील्डर और आक्रामक हाकी के लिए जाने जाते हैं। राजकुमार पाल का सपना है कि आगामी जापान के "टोकियो" में आयोजित होने वाले ओलम्पिक में हिन्दुस्तान की हाकी को फिर से वही रुतबा दिलवाया जाये जो कभी हाकी के जादूगर "मेजर ध्यान चंद" के दौर में था।
हिन्दुस्तान की हाकी के नए बाज़ीगर "राजकुमार पाल" के उज्जवल भविष्य की हार्दिक शुभकामनाएँ इस उम्मीद के साथ कि हिन्दुस्तान हाकी में उनके दम पर फिर से बादशाहत कायम हो सके।
जय अहिल्या!
शेफर्ड उमा शंकर पाल
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